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सामाजिक दूरिया

 सामाजिक दूरिया 

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Image credit : Unicef

फ़िके रहे होली के रंग,            

नया आ गया जीने का ढंग।

न मिलाते हाथ हम,    

          

 गले मिल  न सके रमजान में।

वो मेलो की मस्ती नही,              

ओर झूमती शादी कहा।

हम ही नही  परेशान है,

भयभीत है सारा जहाँ।

 दूरिया समाज मे,

वीरान सी है बस्तियां ।

 कैद  है अपने घरों में,           

रूठी है  जैसे मस्तियां।

बेश कीमत जान तेरी ,   

महंगी नही  ये दूरियां।

महफूज तेरा घर रहा तो,

फिर हँसेंगी जिंदगी।

पालना मिलकर करे हम,

ये सामाजिक दूरिया ।

 फर्ज समझे हम सभी,

 यह कोरोना का दौर है, 

 और वक्त की मजबूरिया ।

Why Indians put religion and festivities ahead of covid precautions ?

 *Religionism enters rationalism exit.

It’s been nine months, India facing the pandemic with parallel many national and international problems.

Coronavirus’s journey from one Indian to above 7.7 million seems ignoring of covid precautions.

Initially, India worried about pandemic after watching media coverage and whatsapp forwards. People were having fear until covid reached to villages, then the fear turn slowly into normalization. 

We Indians have instinct to get habitual and finding comfort in living within whatever served.

But religion is the driving force, which can turn into similar to ‘ sepoy mutiny‘ of 1857. The mutiny’s hero Mangal Pandey and many orthodox Hindu – Muslim served passionately British until before cow and pig fat used in the cartridges which is against the conduct of religion.

This led mutiny against British company.

Faith v/s covid-19

Credit : DTnext.in


Albert Einstein quoted – “Science without religion is lame, and religion without science is blind”.

I doubt this, because where science asks proofs and belief can’t be considered as proof.

The fear from unknown phenomenon and objects of nature like fire, thunder, oceans where we had no clue about these in Vedic period, the Vedic people generated/portrayed the unfamiliar phenomenon as God, examples are Indra as thunder god, Agni Dev as god of fire etc.

Till recent, small pox and chicken pox were deificated as Badi Mataji and Choti Mataji naming after Goddesses. And, Faith is the only cure of these highly contagious viral infections.

In covid episodes, we watched several people worshipping _Corona Devi_. Orthodox Indian people mind reflects that if we had no solution to the problem, let faith solves the problem. It popularizes faith among others too.

Here probability plays a significant role. Let assume 100 Corona positive worshipped/prays to _Corona Devi_ for the recovery from corona disease. Current recovery rate of covid-19 in India is 89% means 89/100 people somehow recovered and the credits passed to Coronadevi which result in strengthen of faith in Her. The recovered 89 thinks religion had treatment of every problem.

Nowadays, religious extremism is growing in India. Every orthodox is concerned about their religion, often heard ‘ religion is in danger’.

In the battle of supremacy in India on the religion basis, neither religion wants to miss any chance to be look inferior. So, despite of covid-19 religious practices is being conducted by Indians.

jamaat to janmabhoomi pujan, religion put ahead of covid-19 precautions.

Sadly, Rural India runs and lives on faith only. A major part of India drinks contaminated drinking water, eat unhygienic food, live at vulnerable areas, no sanitation facilities. Health is at same risk in covid-19 or daily problems. 

Poor India’s life is on see-saw, and the risk is permanent. In that case, faith in God/religion is on the only path for awaking next morning.

*Opportunistic profit from faith*

Yet, Covid-19 is not over. But temples are allowed to open. Ganga, Pushkar Ghats are open for Yajamans. 

The whole country affected economically, every household suffered, jobs loss, ill-treatment led death, these effects due to lockdown will remain for years. Political leaders were busy in to get urgent temple construct, pilgrims and government’s priorities reflected in these hard times.

It all raises a question that whose demand was to open to temples before manufacturing and labour markets, school and colleges? And whose earnings were disturbed?

Political and religious catalyst plays significant role, to make sure that people should not lose faith in religion.

 *Rituals with covid precautions*

Recently, on Ganesh Chaturthi, virtual Aarti(s) were held and home delivery of Prasad gave glimpses of future rituals.

Rituals like Hawan, with the time passes turn into small Diya-baati; Vocal Bhajan replaced by home theater.

And now Aarti(s) conducting online, may covid-19 put effect on evolutions of rituals.

It seems Indian rituals and covid precaution can’t be done hand in hand.

Pranaam (touching feet of elders), Mu’anakka (Hug after Eid), Prashaad distribution, ritual baths in Kunds etc. violates covid precautions of distancing.

Despite, culture and religion practices prioritized against health risk.

 *Festivals as livelihood*

Festivals bring great opportunities of earning for locals and skilled workers to its peak. People cannot prevent themselves from religion and festivals as many depend only on this.

In festival like Diwali, Dussehra, Ganesh chaturthi, Durga puja, Eid and many boost the income in every sector, whether Gold, automobile etc.

Those dependent spiritually, economically on religion and requires to practice it anyhow.

*To generate scientific temper: fundamental duties*

India should first focus on pandemic to eradicate, till then Indians should halt for any religious and festivities conducting.

We have to accept it that covid-19 needs scientific solution and currently which is social distancing only.

Religion is sustained and will be sustained post-covid also, but the need of the hour is a ‘break’. Break from activities which can affect the human survival.

By COI, to generate scientific temper is the fundamental duty of every citizen of India.

कविता – सोसियल डिस्टनसिंग

  सोशियल डिस्टेंसिंग
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इतना कहर,थोड़ा ठहर।

ये फासले अच्छे नही,
हम दिलो से है जुड़े,
पर दूरिया बस्ती में है।

यह दौर ऐसा आ गया,       
  जब देश ही नासाज है।।
 न रिश्तो में कोई नुक्स हैं।
ऐहतिहात   है बस रोग से।

हकूमतों संग  अवाम हैं,
थम गये पहिये सभी।
और रास्ते  सब जाम है।
हर जुबा पर कोरोना,
बस एक ही तो नाम है।

हम समझे सारे फर्ज अपना,
मादरे वतन के खातिर।
काम आये अवाम के हित,
खुश होकर उतारे कर्ज अपना।

वक्त ये दुश्वारियो का,
जल्दी पलट के  जायेगा।
दूरिया समाज की ,
मिट जाएगी एहतराम कर।
वो पुराना भाई चारा,
और गले मिलना  हमारा।
एकता हर कौम की,
मुस्कुराती जिंदगी का,
फिर दिखेगा  प्यारा नजारा।

शारीरिक दूरी बचाव है पर सामाजिक दूरी अभिशाप ।।।।

शारीरिक दूरी बचाव है पर सामाजिक दूरी अभिशाप
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वैश्विक महामारी कोविड 19 से बचाव  के लिए दुनिया भर के चिकित्सा विज्ञानियों द्वारा सर्वसम्मत उपाय बताया है  शारीरिक दूरी बनाकर रहना । यह वायरस व्यक्तिगत सम्पर्क  से  तुरन्त फैलता है  इसलिये इससे बचने के लिए संक्रमित व्यक्ति  का स्पर्श  न किया जाय और  उससे  दूरी बनाकर  रखते हुये उसके स्पर्श किये कपड़ो या अन्य वस्तुओं को न छुआ जाय।कोरोना संक्रमण को रोकने का यही कारगर तरीका है ।जब भी कोई व्यक्ति संक्रमित होता है  तो सबसे पहले उसे परिवार व अन्य लोगो से अलग रखा जाता है ताकि उससे  स्पर्श या सम्पर्क  में आकर अन्य लोग संक्रमण का शिकार न हो सके।सरकारी बोलचाल ओर मीडिया द्वारा इसे सामाजिक दूरी (सोशल डिस्टेंसिंग ) के नाम से पुकारा जा रहा है , जो सही नही है।वास्तव में यह सामाजिक दूरी  (सोशल डिस्टेंसिंग)नही   बल्कि  शारीरिक या भौतिक दूरी ( फिजिकल डिस्टेंस)बनाकर ही इस संक्रमण  से   हम बचाव कर सकते है।जब तक किसी संक्रमित बीमार व्यक्ति के सम्पर्क में हम नही आएंगे ,तब तक पूरी तरह सुरक्षित रह सकते है।शारीरिक स्पर्श के अलावा बीमार व्यक्ति के खांसने ,छिकने, उसके कपड़ो या अन्य वस्तुओं के स्पर्श से भी हम संक्रमित हो सकते है इसलिए ऐसे बीमार लोगो से पर्याप्त दूरी बनाकर  ही महफ़ूज रह सकते है।

      कोरोना महामारी के कारण देश भर में लॉक डाउन किया गया है ।बाहर से आने वाले प्रवासियों की स्वास्थ्य जाँच करते हुये  इन लोगो को  सुरक्षित व एकाकी स्थानों या  घर पर कोरण्टाईन किया जाता है ,जिससे कोई संक्रमित व्यक्ति अन्य लोगो मे संक्रमण न फेला सके।इस वायरस के संक्रमण की पुष्टि होने में करीब दो सप्ताह  तक का समय लग जाता है।
  हमारे देश मे करीब  दो महीने से ज्यादा समय  से लॉक डाउन है, जिसमे समस्त शैक्षणिक संस्थान, व्यवसायिक  ओर औधोगिक प्रतिष्ठान ,निर्माण कार्य ,समस्त परिवहन व्यवसाय और कामगार गतिविधियो पर पूरी तरह से रोक लगाते हुये लोगो को अपने घरों में बंद रहते हुए किसी के सम्पर्क में न आने सहित अनेकानेक मार्गदर्शक वर्जनाएं लागू की गई थी, जो आज भी कही न कही किसी न किसी रूप में जारी है ।जहाँ संक्रमण का फैलाव है ,उसे रेड जॉन मानते हुए धारा 144 लगाकर समस्त नागरिक गतिविधिया स्थगित की जाती है। इस लॉक डाउन की पालना करवाने के लिये शासन प्रशासन द्वारा बहुत समझाईश करने के बावजूद  न मानने पर थोड़ी  सख्ती भी बरती जा रही है।
  सारे रोजगार बन्द होने से मजदूर  और छोटा व्यवसायी वर्ग बेरोजगार हो गया है व  भुखमरी  का शिकार  होकर लाखो करोडो की तादाद में  लोग पलायन करके अपने गृह प्रदेश और गांवो की ओर  निकल पड़े  है। रेल बस टैक्सी सहित सभी परिवहन  स्थगित होने  के कारण व कोई साधन न मिलने के कारण ये मजदूर लोग सेकड़ो हजारो किलोमीटर की यात्रा पर पैदल ही  चल पड़े है।ये मजदूर भूखे प्यासे  अपने छोटे मासूम बच्चों, महिलाओं  व परिजनों को लेकर  पराकाष्ठा की सीमा तक तकलीफे उठाकर  यात्रा कर  रहे है।इनकी लाचारी व दुख दर्द इतना है कि उसे शब्दो मे अभिव्यक्त करना मुश्किल है ।अनेक लोग भुखमरी, बीमारी और दुर्घटनाओं के चलते कालकवलित हो चुके है । तमाम सरकारी प्रयासो के बावजूद देश की सड़कों और रास्तो पर लाखो अभागे श्रमिको का  सैलाब कम होने का नाम नही ले रहा है। भूख प्यास ओर आर्थिक बेबसी के बावजूद  अनेक जगहों पर पुलिस की मारपीट  इनकी बेबसी और समाज के अमानवीय व संवेदनाहीन चेहरे को प्रकट करता है।
कोरोना संक्रमित क्षेत्रों में प्रशासन की कड़ी पबंदियो के कारण  आमजन को राशन पानी सहित अन्य बुनियादी सुविधाओं के लिए बहुत परेशान होना पड़ रहा है। लोग अपने घरों में कैद है, ऐसे में मजदूर ,किसान ,व्यापारी, उधोगपति ,कर्मचारी ओर विद्यार्थी वर्ग   शारीरिक  दूरी की पाबन्दियों से आजिज आ चुका है।
   देश मे कुछ सप्ताहों की  शारिरिक  दूरियों के लिए घरों में रहने की हिदायतों और   अन्य सभी गतिविधियो पर आंशिक या पूर्ण पाबन्दियों के कारण देश की जनता का  जीना मुहाल हो गया है ।गरीब और मजदूर वर्ग को अपना पेट भरना  मुश्किल हो गया है।जबकि यह पाबंदियां सरकार द्वारा आमजन  को इस महामारी के संक्रमण से बचाने के लिये  लगाई गई है ।सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनोती है कि वह देश की जनता का जीवन सुरक्षित रखे ,यह लॉक डाउन उसी की कवायद है।इसमे नुकसान कम और फायदा अधिक है क्योंकि जीवित रहने की शर्त
पर  आर्थिक नफा नुकसान कोई मायने नही रखता ।मानव जीवन अतुल्य ओर अनमोल है ।
क्या हम कल्पना कर सकते है कि   सदियों से हमारे ही समाज का बहुत बड़ा वर्ग सामाजिक दूरियों(सोशल डिस्टेंसिंग) के अभिशाप के साथ जी रहा है ।कभी किसी ने यह सोचने की जहमत   नही उठाई कि इंसान ने ही  दूसरे इंसानो के प्रति इतना घृणित  और नकारात्मक नजरिया क्यो रखा। भारत मे जातिवादी सामाजिक दूरिया(सोशल डिस्टेंसिंग) दुनिया का दुर्लभतम उदाहरण है।  समाज के कुछ वर्गों ने  कथित निम्न जातियों के बहुजन वर्ग  के हाथ का खाने से ,उनके स्पर्श से ,सार्वजनिक स्थानों  व संसाधनो के उपयोग व उपभोग से  अनर्थ होने, धर्म भ्रष्ट होने और पाप लगने का भ्रम  पाला गया है ।इन पाखंडी व जातिवादी स्वार्थी लोगो ने भोली भाली जनता को भी दिमागी रूप से पंगु बनाकर उन्हें भी ऐसे अमानवीय जातिगत व्यवहार अर्थात सामाजिक दूरिया ओर वर्जनाएं मानने के लिए मानसिक तौर पर उत्प्रेरित करके इस व्यवस्था में ढाला है।

     हमारे समाज के इस शोषित व पिछड़े वर्ग को  सैकड़ो वर्षो से उसके मानवीय ओर मूलभूत अधिकारों से वंचित रखते हुए  उन्हें अच्छा भोजन करने से ,अच्छे वस्त्र पहनने से ,स्वच्छ पानी पीने से ,शिक्षा ग्रहण करने से  मन्दिरो में पूजा पाठ से और सामाजिक समागम  के तमाम आयोजनों से  वंचित करके  सामाजिक दूरिया रखते हुए इस गरीब वर्ग को अपमानित व प्रताड़ित किया गया। कथित स्वर्ण जातियो ने सामुहिक तौर पर इस वंचित वर्ग पर इतने अत्याचार किये जिसका वर्णन करना बहुत कठिन है।ये वंचित ओर शोषित लोग इसी देश के मूलनिवासी  और सहधर्मी होते हुये  सदियो से किन अभावो ओर त्रासदियों को झेलते हुए यहाँ तक जीते आये है वह  बेमिसाल है ,और यह सब उच्च वर्गों की सामाजिक दूरियों(सोशियल डिस्टेंसिंग) ओर वर्जनाओं के कारण  ही हुआ है।यहाँ प्रश्न यह उठता है कि या तो शोषित समाज के लोग इंसान नही अथवा कथित अगड़ा वर्ग के लोगो मे इंसानियत ही नही है।
     देश की आजादी और भारतीय संविधान के लागू होने के बावजूद  ऐसे अराजक तत्व इन जातिवादी दूषित परम्पराओ ओर व्यवहार को बदस्तूर जारी रखना चाहते है।हालाँकि संवैधानिक  और कानूनी बाध्यताओं के कारण    व आधुनिक शिक्षा के फलस्वरूप अनेक लोगो के  सार्वजनिक ओर वैयक्तिक व्यवहार और सोच में थोड़ा परिवर्तन हुआ है  परन्तु सामाजिक  स्तर पर  जातिवाद से ग्रसित  समाज  जातीय ऊंच नीच की  कुंठाओ से अभी भी विमुक्त नही हुआ है।
   यदि हम निर्विकार भाव से सामाजिक दूरी (सोशियल डिस्टेंसिंग)की बात करे तो  तार्किक रूप से इसका कोई लाभ नही दिखता है।इस भेदभाव से समाज के कथित उच्चवर्गो को गरीब व पिछडेवर्गो का  हर प्रकार से अनैतिक शोषण करने का  अधिकार जरूर मिलता है। देश मे पिछड़े वर्ग के प्रति दुरावपूर्ण व्यवहार से इस समाज की शारीरिक और बौद्धिक क्षमताओं का सदुपयोग नही किया गया जो अंततोगत्वा राष्ट्र के लिए हानिकारक ही साबित हुआ है  जिसके प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष अनेकानेक दुष्प्रभाव देश पर पड़े है।
 इस कोरोना वायरस की विश्वव्यापी महामारी  की त्रासदी के  कारण आने वाले समय मे लोगो की सोच और जीवनशैली में बहुत बदलाव आयेगा ।एक नूतन व परिष्कृत जीवन प्रणाली विकसित होगी ऐसी संभावना है।ऐसे में समाज वेत्ताओं  और धार्मिक नेतृत्व कर्ताओ को  सामाजिक दूरियों की अप्रासंगिक और कालबाह्य न्यूनताओं  को समाप्त करके समर्थ और समृद्ध राष्ट्र बनाने की दिशा में पहल करनी चाहिए।समस्त धार्मिक ग्रन्थो और सामाजिक व्यवहारों की निष्कपट समीक्षा करके वर्तमान परिपेक्ष्य के अनुरूप  सामाजिक व्यवहारों का निर्धारण और पालन जरूरी है ,यही देश के लिये हितकर  होगा।

डॉक्टर ही भगवान और अस्पताल बने मंदिर ।।।

डॉक्टर  ही भगवान और अस्पताल  बने मन्दिर:-
—————————————- मनुष्य जीवन सर्वोत्तम ओर दुर्लभ  माना जाता है जिसके सामने इंसान की सारी प्राथमिकताएं  नगण्य है। आज इंसान ने विकास करते हुये  अपने को बहुत समर्थ ओर अजेय सा बना  दिया है। अपने तकनीकी  और वैज्ञानिक ज्ञान के बल पर जल थल व नभ पर अपना वर्चस्व सा कायम कर दिया है।   वर्तमान समय मे  कोविड 19  महामारी ने  दुनिया मे तहलका मचा दिया है । हर देश अपने नागरिकों को इस वायरस से बचाने का भरसक प्रयास कर रहा है परन्तु लाखो   लोग  कोरोना  महामारी की चपेट में आ गये है और प्रतिदिन इसका शिकंजा ओर दायरा बढ़ता ही जा रहा है ।हजारो लोग  अपनी जान गवा चुके है ।हमारे देश मे भी इस वायरस ने  महामारी का रूप ले लिया है ।देश मे तीसरी बार लॉक डाउन करके सारी गतिविधिया बन्द की जा चुकी है । केंद्र व राज्य सरकारें  औऱ उनका शासन प्रशासन रात दिन  इस महामारी से बचाव में लगा है ,बावजूद इसके संक्रमण का विस्तार लगातार हो रहा है।

        राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय आपदा के इस मुश्किल हालात में अग्रिम पंक्ति में हमारे देश के डॉक्टर नर्सिंग कर्मचारी ओर अस्पताल ही उम्मीदों के केंद्र बने है।आज जनता को कही पर  राहत व  उपचार मिल रहा है , तो इन्ही अस्पतालों से।देश भर के डॉक्टर और चिकित्सा विभाग का अमला  रात दिन  अपने कर्तव्य को निष्ठापूर्वक निभाकर बीमार लोगो का जीवन बचाने में  लगा है।
      डॉक्टरों और उनके सहकर्मी चिकित्सा कार्मिको का यह पुरुषार्थ हर किसी को नतमस्तक होने को मजबूर करता है ।।         3 मई  2020 को द्वितीय लॉक डाउन की समाप्ति औऱ  तृतीय लॉक डाउन की शरुआत पर  भारत और  पूरी दुनियां ने  अभूतपूर्व नजारा देखा ,जब हमारी थल सेना वायुसेना ओर जलसेना ने  देश के चिकित्सको और अस्पतालों  पर हेलीकॉप्टरों द्वारा पुष्प वृष्टि की गई ।सेना के बैंड ने अनेक स्थानों पर बैंड वादन करके और समुद्र में लड़ाकू जहाजो पर  मनोरम लाईटिंग करके देश के असली हीरो हमारे  चिकित्सा विभाग  के कार्मिको को सम्मान देते हुए उनके प्रति कृतज्ञता प्रकट की गई।
तीनो सेनाओं द्वारा ऐसा सम्मान दर्शाना दुर्लभतम उदाहरण है ।देश  भर मे आमजन ने भी  मेडिकल स्टाफ पर कही  पुष्प वृष्टि  ,तालिया बजाकर और दीपक जलाकर इन योद्धाओं के प्रति सम्मान प्रकट करते हुऐ इनके लिए दुआएं  मांगी
   डॉक्टरों और नर्सिंग कार्मिको को यह सम्मान क्यो मिला इसको समझने की जरूरत है ।इन योद्धाओं ने कोरोना जैसी जानलेवा महामारी की अभी तक कोई दवाई न होने के बावजूद अपनी जान जोखिम में डालकर रात दिन बिना थके बिना रुके ड्यटी निभाई है ।चिकित्सा विभाग के योद्धाओं ने कई कई दिनों तक घर सेव  बच्चो से दूर रहकर  खाने पीने की परवाह न Uकरते हुए उच्च मानवीय मूल्यों का परिचय दिया है।इस  जंग को लड़ते हुये अनेक डाक्टर और  नर्सिंग स्टाफ संक्रमित हुए और अपने जीवन की जंग ही हार गए परन्तु मेडिकल टीमो का हौसला कम नही हुआ।

       देश के बड़े उद्योगपति रतन टाटा  ने हमारे जीवन को रेखांकित करते हुऐ एक लघु सन्देश जारी करके  कहा है कि वर्ष 2020 जीवित रहने का साल है ,लाभ हानि   की चिंता न करे।सपनों और योजनाओं के बारे में  बात न करे।इस वर्ष अपने आप को जीवित   रखना ही सबसे बड़ा ॥लाभ है। रतन टाटा ने बहुत सार्थक बात कही है।हमारे जीवन की तुलना  किसी से नही की जा सकती ,वह अतुल्य है।बाकी सारी गतिविधिया बाद में भी हो सकती है ,परन्तु जीवन दुबारा नही लौट सकता । हमारे डॉक्टरों द्वारा  असामान्य परिस्थितियो में  आमजन की जिंदगी बचाने  की लड़ाई  लड़ी जा रही है।
   कोरोना  वायरस ने ऐसा हाहाकार मचाया है कि लॉक डाउन की वजह से सारे उद्योग  धंधे और व्यापारिक गतिविधिया ठप्प है । सभी धर्मों के समस्त धार्मिक  आध्यात्मिक  सार्वजनिक स्थान पूरी तरह बंद है। सरकारी ,निजी और सामाजिक आयोजन बन्द है। हवाई, रेल ,बस  व टेक्सी  परिवहन बन्द है ।सभी स्कूल कॉलेज और खेल प्रतियोगिताये भी बन्द है ।सभी नागरिकों को घर मे बन्द ओर सुरक्षित रहने  की सख्त हिदायत है ।धारा 144  लगाई गई है । जीवन उपयोगी आवश्यक सामान ही उपलब्ध करवाया जाता है ।ऐसे  हालातो में  डॉक्टरों ओर नर्सिंग स्टाफ का  मैदान में डटे रहना  वन्दनीय है ।
           इस वैश्विक महामारी के संकटकालीन  समय मे लोगो के मन मस्तिष्क मे कुछ  बाते स्पष्ट होती जा रही है जिनकी तरफ सबका ध्यान गया है ।पहली बात यह कि व्यक्ति के लिए उसके जीवन से बढ़कर  दुनिया मे दूसरी  कोई अनमोल वस्तु हो नही सकती।
दूसरी बात यह कि दुनिया भर में लोग धार्मिक प्रपंचों में पड़ कर अपने कीमती समय और धन की बर्बादी इस उम्मीद में करता है कि मुसीबत में उसे ईश्वरीय सत्ता बचायेगी पर कोरोना महामारी ने इस धारणा को निर्मूल साबित कर दिया क्योंकि दुनिया भर के तमाम नामचीन बड़े बड़े धार्मिक केंद्रों पर भी ताले लगा दिये है ।सिर्फ वैज्ञानिक चिकित्साशास्त्र ही  जीवन बचाव का एकमेव उपाय है ।
 तीसरी बात यह कि  मनुष्य ने  बहुताधिक  सुख सुविधाओं की चाह में  अपना रहन सहन ,खान पान  ओर जीवनशैली को   जरूरत से ज्यादा बदल दिया है ।प्रकृति  और पर्यावरण का  शोषण किया है  जो आत्मघाती कदम साबित हो रहा है । संयमित ,नियमित ओर सादगीपूर्ण जीवन ही ज्यादा खुशहाल ओर सुरक्षित हो सकता है।
   सरकार और आमजन को चिकित्सको ओर अस्पतालों के प्रति  नजरिया बदलकर  इन जीवन केंद्रों को अधिक सक्षम सुविधासम्पन्न  और विस्तारित करने की  बहुत आवश्यकता है ।यह समय हमारे चिकित्सा कार्मिको  की हौसला अफजाई ओर  उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित करने का  अवसर है  ।

लेख – मंगलमुखी समाज पर कोरोना का अमंगल साया !!! #article

*मंगलमुखी समाज पर कोरोना का अमंगल साया *

इस समय फसलों के कटने  के साथ देश प्रदेश में  वैवाहिक ,धार्मिक व सामाजिक आयोजनों का दौर चलता है ।वैवाहिक व मांगलिक आयोजनों के अवसर पर उल्लास और खुशियो को बढ़ाने के लिए लोग  पेशेवराना संगीतकारों और बैंड वालो  की सेवाएं लेते है। बैंड वालो व संगीत का व्यवसाय करने वालो के लिए यह समय सीजन का होता है ,जिसमे ये लोग साल भर  की कमाई  का जुगाड़ करते है।अक्षय तृतीया  वैवाहिक सावो का  अबूझ  मुहूर्त  माना जाता है ।परीक्षाओ के समापन के साथ स्कूल कॉलेजो में अवकाश  पड़ने के कारण ज्यादातर परिवार अपने शादी लायक बच्चो के विवाह एवं अन्य तयशुदा सामाजिक व धार्मिक कार्यक्रमो  का आयोजन करते है ।ऐसे में वे लोग अपने मांगलिक प्रसंगों को रोचक व मनमोहक बनाने के लिए इन संगीत साधको की सेवाएं  लेते है।हम देखते है कि बैंड वाले व संगीतकार कलाकार अपनी सुरीली  संगीत प्रस्तुतियों से यजमान के खास आयोजन   में चार चांद लगा देते है ।कार्यक्रमो में शरीक लोग इनकी कलाकारी पर मुग्ध होकर नाचने पर मजबूर हो जाते है।

    इस समय हमारा देश प्रदेश ही नही बल्कि पूरी दुनिया  कोरोना महामारी से बचाव की भरसक लड़ाई लड़ रहे है। पूरे देश और सभी राज्यो में सम्पूर्ण लॉक डाउन  व अनेक जगह कर्फ्यू लगाया गया है ।केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा अपने नागरिकों  की जान बचाने हेतु कड़े सुरक्षात्मक उपाय किये है जिसका दंश पूरा समाज झेल रहा है। सारे वैवाहिक ,धार्मिक , सामाजिक ,राजनीतिक व शैक्षणिक कार्यक्रम प्रतिबंधित कर दिए है जिसकी बहुत जरूरत भी है। कोविड़ 19 महामारी को देखते हुए आमजन ने भी अपने सभी प्रकार के आयोजनों को स्थगित कर दिया है।यदि किसी ने अपवाद स्वरूप शादी ब्याह किया भी है तो मात्र दो पांच लोगों की उपस्थिति में औपचारिकता निभाई होगी वह भी कोरोना प्रोटोकॉल का पूर्ण पालन करते हुऐ।
 जब सबकुछ लॉक डाउन  हो चुका है तो  ऐसे हालात में बैंड बजाने व संगीत के व्यवसाय से जुड़े लोगों  के   लिए हालात बहुत मुश्किलात भरे हो गये है ।वैवाहिक व अन्य आयोजनों की तिथियो को लेकर किये गए समस्त  अनुबंध स्वतः निरस्त हो चुके है जिससे आर्थिक रूप से कमजोर इन कलाकार मजदूरों  की कमर पूरी तरह टूट चुकी है । पूरे वर्ष भर  इन लोगो को इस सीजन की बेसब्री से प्रतीक्षा रहती है क्योकि इसी दौर में  ये  संगीत साधक मजदूर   वर्षभर की  घर चलाने लायक कमाई कर लेते है परन्तु इस बार ऐसा नही है।कोरोना वायरस की अमंगलकारी दस्तक ने इस व्यवसाय से जुड़े  गरीब लोगों की रोजी रोटी  का जरिया ही समाप्त कर दिया है ।आज ज्यादातर परिवार फांका कशी के संकट से जुंझ रहे है ।लॉक डाउन की वजह से  बैंड व गाने बजाने के धंधे पर पूर्णतया  निर्भर लोग दूसरा कोई  रोजगार भी नही कर पा रहे है ।
  जहाँ तक बैंड बजाने और गाने बजाने से जुड़े लोगों का सवाल है तो इसमें ज्यादातर  परिवार परम्परागत  रूप से अनुसूचित व अल्पसंख्यक वर्ग के तबके ही शरीक है । यह धंधा सीजनल ही चलता है  और साल के अन्य दिनों में कभी कभार ही काम मिलता है । बेंड वाले लोग  खाली समय मे गाने बजाने का रियाज करते है ताकि  अनुबंधित तिथियो पर बढ़िया से बढ़िया प्रस्तुति दे सके।  बैंड पार्टी चलाने वाले लोग अपनी जरूरत के लिहाज से महीने ओर साल के हिसाब से कलाकारों को अनुबंधित करके उन्हें अग्रिम रकम देकर  निवेश करते है साथ ही  आवश्यकतानुसार साजो सामान ओर वाद्ययंत्र खरीदते है  जिससे  उनकी साख व रुतबा बना रहे। इसके लिए लाखों रुपयों का कर्ज करते है परंतु इस बार कोरोना संकट ने इन लोगो को तबाह करके कही का नही रखा।
        मुख्यधारा से कटा हुआ सर्वथा उपेक्षित और नेतृत्वहीन यह कलाकार तबका आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है ।किसी को कही से कोई उम्मीद नजर नही आती।सरकारों द्वारा भी कभी इस कला उपासक संगीतकारो की तरफ कोई ध्यान देने की जहमत नही उठाई।सभी सुविधाओं  से महरूम यह  वर्ग   अपने परिवार और  बच्चो के सुनहरे भविष्य को लेकर बहुत  हताश है और सरकारों से  उम्मीद करता है कि उनकी कोई सुध ले ।इनके लिए अच्छी तालीम के लिए सुविधायुक्त आवासीय  विद्यालय खोलते हुये इन परिवारों को विशेष पहचान पत्र जारी कर  तमाम सरकारी योजनाओं का लाभ मिले जिससे  इनकी मद्धम पड़ती जिन्दगी में उम्मीद  की लौ   रोशनी कर सके।

निबन्ध – कोविड19 और धार्मिक पलायन #article

*कोविड 19और धार्मिक पलायन*:-
कोरोना वायरस का संक्रमण वैश्विक अभिशाप के रूप में मानव जीवन के अस्तित्व के लिए बड़ा संकट बनकर दुनिया के ज्यादातर देशों में अपनी मनहूस दस्तक दे चुका है ।वैसे तो दुनिया मे विश्वयुद्धों सहित अनेकानेक संकट और विषम परिस्थितिया उत्पन्न होती रही है ,परन्तु कोरोना ने  दुनिया के जितने बड़े भू भाग और जनसंख्या को  प्रभावित किया है,वह अपने आप मे अभूतपूर्व है।दुनिया के तमाम प्रगतिशील और विकसित देशों को भी झकझोर दिया है ।तकनीकी रूप से सुसम्पन्न देश भी भयाक्रांत हो चुके है।अनेक देश अपने हजारो नागरिकों को कालकवलित होते हुये देखकर  भी बेबस है।यह वायरस गरीब अमीर जाति धर्म व क्षेत्र का भेद किये बिना  सबको अपने क्रूर शिकंजे में जकड़ रहा है।अनेक राष्ट्राध्यक्ष व दुनिया के शीर्ष  और सुरक्षित लोग भी इस महामारी की चपेट में  आ चुके है।
     अमेरिका ब्रिटेन स्पेन  फ्रांस ईटली जर्मनी जापान  चाइना ओर सऊदी अरब  सहित अनेक प्रभावशाली ओर सम्पन्न देश भी अपने नागरिकों का बचाव नही कर पा रहे है । दिसम्बर 2019 से लेकर आज तक  इस वायरस का कहर उत्तरोत्तर  बढ़ रहा है और आगे भी इसका जानलेवा प्रसार होने का अंदेशा  जानकारों द्वारा व्यक्त किया जा रहा है।कोरोना  महामारी के कदम थमने का नाम नही ले रहे।यह मानविय जीवन पर ऐसा प्रहार है कि  कोई उपाय   फिलहाल नही दिखता ,अभी तक इसकी कोई वेक्सीन  भी ईजाद नही हुई है ।प्रमाणिक ओर विशेषिकृत ईलाज न होने के   कारण   कोई उपाय व उपचार  भी कारगर साबित नही हो रहा ।अनेक देशों में लाशो के ढेर और कब्रिस्तानों  में दफनाने की समस्या भयावह है।मृतक व्यक्तिओ के परिजनों को दाहसंस्कार  से दूर  रखना भी त्रासदीपूर्ण है।
दुनिया मे इंसान ने भौतिक विकास के साथ साथ धर्म और अध्यात्म को भी अपनाकर उसे अपने जीवन के लिए आवश्यक माना है।अनेक लोग धर्म को नकार कर नास्तिक बन गये, उनका मानना है कि यह दुनिया प्राकृतिक  कारणों और क्रियाओं से करोड़ो वर्षो में विकसित हुई है ओर धीरे धीरे  मानव जीवन का विकास हुआ है ।वे किसी ईश्वर अथवा अलौकिक शक्ति को सिरे से  खारिज करते उहै।ऐसे नास्तिक लोगो का  यह भी मानना है कि ईश्वर ,देवता या पैगम्बर इंसानों ने अपने स्वार्थ के लिये  बनाकर इनके व धर्म  उपासना के नाम पर लोगो का शोषण करते है। नास्तिक मानते है कि ईश्वर ने इंसान को नही बल्कि इंसान ने  ईश्वर का सृजन किया है।वे अपने पक्ष में दलील देते हुये कहते है कि  जहाँ इंसान रहता है वही ईश्वर के मंदिर मस्जिद या स्थान मिलते है ।किसी ऐसी जगह ईश्वर होने का  कोई प्रमाण नही मिला जहाँ इंसान अभी तक नही पहुच पाया है।नास्तिक लोगो की ठोस दलील है कि ईश्वर अल्लाह को किसी ने आज तक देखा ही नही।अप्रमाणिक कथा कहानियों और धार्मिक पुस्तको में ईश्वर  के बारे में लिखा वर्णन मिलता है ।ईश्वर की प्रत्यक्ष उपस्थित किसी ने  महसूस नही की ।
भगवान की मूर्ती को मास्क पहनाया गया !

हम देखते है कि आये दिन मासूम ओर अबोध बच्चो  के साथ बर्बर  दुष्कर्म ,उनकी निर्मम हत्या ,भूख प्यास से दम तोड़ते लोगो की वेदना देखकर भी  ईश्वर कभी मदद को नही पहुँचा।हालांकि दुनिया मे ऐसे नास्तिक लोगो की  तादाद अपेक्षाकृत कम है।
   संसार की  बहुत बड़ी आबादी आज भी ईश्वर के प्रति गहरी आस्था रखने के कारण धर्म और अध्यात्म  से अपने को जुड़ा मानते है ।ये लोग धर्म को जीवन का आधार मानते है और अपनी  नित्य की दिनचर्या  में  इसका पालन भी करते है। हिन्दू ईसाई यहुदी पारसी  इस्लाम व बौद्ध जैसे प्रमुख धर्मो के अलावा  जैन सिख व लिंगायत आदि अनेकानेक पंथ और मत सम्प्रदाय है।आदिवासी लोग प्रकृति को पूजते है एवं अपनी स्थानीय परिस्थितियो और मान्यताओं के अनुसार धार्मिक देवता व प्रतीकों का पूजन करते है।
    धार्मिक लोगो को ईश्वर से बहुत उम्मीद होती है ।ज्यादातर लोगों का यकीन होता है कि उनकी मुसीबतों ओर संकटो में ईश्वर उन्हें सहारा देगा ,उन्हें राह दिखायेगा और आसन्न समस्याओं से निजात दिलवाएगा ।अपनी समस्याओं  के निवारण के लिए  वह मन्दिर गिरजाघर गुरुद्वारा और मस्जिद इत्यादि धार्मिक स्थानों पर जाता है ,मन्नते मांगता है ,प्रार्थना करता है ,पूजा करता है एवं कई बार धार्मिक विधि विधान  भी करवाता है ।इतना ही नही  धार्मिक व्यक्ति अपने  कार्यो की सिद्धि  और  समस्याओं के निराकरण हेतु विशेष पूजा पाठ जप तप तंत्र मंत्र हवन यज्ञ  और अन्यान्य उपायों का  सहारा भी लेता है ।धार्मिक स्थानों पर दान पूण्य  चंदा देकर बदले में अपनी  व परिवार  की खुशहाली  और कुशलता चाहता है ।एक धार्मिक व्यक्ति को  अपने  ईष्ट के प्रति  बहुत आस्था और  विश्वास होता है और उसका परम्  विश्वास होता है कि उसका आराध्य बहुत ताकतवर होता है ,जिसके सामने  सांसारिक समस्याये और बीमारिया आदि तुच्छ है।
          आज के हालात की बात करे तो  सबसे ज्यादा पशोपेश में और किंकर्तव्यविमूढ़  यही धार्मिक और आध्यात्मिक  लोग है।कोरोना वायरस  को लेकर  उत्पन्न वैश्विक संकट में उनसे न कुछ कहते बन  रहा है  न कुछ करते बन रहा  हैं क्योकि  उनकी आशा और अपेक्षाओं  के विपरीत  एक  अदृश्य व तुच्छ वायरस ने सारे मन्दिर मस्जिद गिरजाघर  गुरुद्वारा मठ और उनके  आध्यात्मिक आस्था के केंद्रों को बंद करवा दिया है।जो पुजारी  फादर  मौलवी  पण्डित धर्मगुरु  कथाकार  रात दिन  आस्था और  विश्वास  की घुट्टीया पिलाते   थे एवं
खुद को ईश्वर के प्रतिनिधि बनाकर आस्थावान लोगो का ईश्वर से सम्पर्क संवाद कराके उनकी  समस्याओं और कष्टों को मिटाने में  सहायक  बनने और सिफारिश करने का विश्वास  दिलाते थे ,वे सब नदारद हो गये है।अफसोस कि दुनिया के नामचीन और चमत्कारिक धार्मिक केंद्र  मक्का मदीना, वेटिकन का गिरजाघर , शिरडी  का साई धाम , चारधाम ,शक्तिपीठ  ज्योतिर्लिंग और बालाजी धाम  आदि आदि सभी तो बन्द है।जब इंसान सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है और उसे जीवन बचाने के लिये सबसे ज्यादा  इन देवी देवताओं पीर पैगम्बरों ओर देवदूतों की जरूरत है तब सभी  आस्था केंद्रों के दरवाजो पर ताले लगे है।पूजा पाठ  नमाज  यज्ञ प्रार्थनाएं  आदि अनुष्ठान धार्मिक केंद्रों से सिमटकर  व्यक्तिगत स्तर पर घरों में होने लगे है ।
          आज यह विशाल और अत्यंत प्रभावशाली धार्मिक  नेतृत्वकर्ता वर्ग भयातुर है ।कोई प्रार्थना  दुआ  ईबादत या मन्त्र  काम नही आ रहा है ।बस एक ही उपाय है  भौतिक दूरिया  स्वच्छता ओर सावधानियां ।यदि कोई भी व्यक्ति  कोरोना संक्रमित  होता है तो अस्पताल के सिवाय कोई सहारा नही है ।आज अस्पतालों में जान जोखिम में डाल कर विषम परिस्थितियो में  रातदिन  काम करने वाले चिकित्सको और अस्पताल कर्मियों में साक्षात देवत्व झलकता है ।
      आस्थावान लोगो के लिए  यह  दौर बहुत विचारणीय व असमंझस  भरा है ।उन्हें अंदर ही अंदर यह सवाल सालता है कि  उन्होंने जिस आराध्य  को इतने विश्वास और उम्मीद  से ईबादत करते हुऐ माना है  उन्ही  उम्मीद के उपासना केंद्रों ने अपने  दरवाजे भक्तो के लिये  बन्द कर दिये है । हालांकि आजतक किसी ने ईश्वर को देखा तो नही है पर उसकी आस्था व धार्मिक केंद्रों का बन्द होना और ईश्वर की दुहाई देकर आमजन को ठगने व छलने वाले धार्मिक  प्रतिनिधियो का पलायन वाकई दुखदायी तो है ,पर सबक सिखाने वाला  भी है ।कोरोना वायरस संक्रमण का भयावह दौर  नई सोच को विकसित करने का सौपान बनेगा ।जय भारत जय भारत।

Essay – Major changes, expected in traditions of indian families post corona pandemic

*Major changes, expected in tradition of indian families post corona pendamic*

What if social gatherings will be avoided, like a big fat indian wedding will converted into just a family task of few close people.
What if we can’t call a far standing people just by watching his/her face because his face is covered with masks ? .This corona virus, makes physically impact but it is going to be more than that in every aspect of mankind.
Below, we will discuss that what corona make impact on traditions of indian families.
*Greetings*

The indian family’s, greeting going to change a lot due to corona. India had many religions and their unique way of greetings are practiced.
* Let’s take Hindu greetings, touching feets to elder (Pranaam) and putting hand on the head to the younger(Ashirvaad). After this pandemic, the touching will be avoided and rather will use joining hands ‘Namaste’.
I must add that a hindu community Devasi (also known rebari) greeting people by kissing their hands. And it will be difficult to the community to change and accept a different greeting style.
*Muslim usually hug a number of times each other as greeting (Muanakka), it should be avoided and use ‘Salaam’ lifting right hand to the forehead.
And many ways greeting practices should change after this problem.

*Marriages*
India always highlighted for the indian wedding traditions. The panditji, caterers, sound artist, decoration, guards etc. are the people of 100+ going to reduced just to avoid such large gatherings and relatives will be countable.
Many customs and tradition related to bride and  bridegroom will be practiced with care or else will be avoided.
*Suspecting eyes towards a unhealthy/sick person*

Whether it is cousin or own sibbling, it will going to make a meter distance if he/she is coughing or sneezing more than one time. And will be seen as suspection of corona or any other disease.

Tradition is to take ritual baths in ganga, attending kumbh, hajj pilgrimage will be surely impacted by the covid.
The corona dilemma reached to the villages, so it will be not easy to draw out the fear from the people.
*Just as example – 10 rupees coin was banned as it was spread in the villages, now the govt. sent messages to every mobile that 10 rupees coins are allowed but still they don’t accept in villages.*

Way forward,
For the indian families it will not going to hard, as they were moving to the western fashions. Shaking hands and hugging. Now Namastey is accepted all over the world.
 And in weddings, large gatherings costs a lot to the hosting family. Now they will get some relief and not just the sake of society to impress.
*Cleanliness* in every work will be prior as in tradition or having food.

Rivers are more clean in one month than the govt.’s many scheme and money funding.
Now, if indian family don’t reflect back as before, it will be good for nature and the traditional ‘ganga maiyya’ and the mother rivers.
It is questionable to every believer that what we made to the nature ?, We thought we were doing for god ?.