सामाजिक दूरिया

 सामाजिक दूरिया 

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Image credit : Unicef

फ़िके रहे होली के रंग,            

नया आ गया जीने का ढंग।

न मिलाते हाथ हम,    

          

 गले मिल  न सके रमजान में।

वो मेलो की मस्ती नही,              

ओर झूमती शादी कहा।

हम ही नही  परेशान है,

भयभीत है सारा जहाँ।

 दूरिया समाज मे,

वीरान सी है बस्तियां ।

 कैद  है अपने घरों में,           

रूठी है  जैसे मस्तियां।

बेश कीमत जान तेरी ,   

महंगी नही  ये दूरियां।

महफूज तेरा घर रहा तो,

फिर हँसेंगी जिंदगी।

पालना मिलकर करे हम,

ये सामाजिक दूरिया ।

 फर्ज समझे हम सभी,

 यह कोरोना का दौर है, 

 और वक्त की मजबूरिया ।

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