महापरिनिर्वाण दिवस – डॉ अंबेडकर:गरल पीकर अमृत दिया

भारत भूमि महापुरुषों की  जन्म व कर्म भूमि है जहाँ  अनेक मनिषी  पैदा  हुये है, जिन्होंने अपने  ज्ञान  त्याग   तप  सेवा  से सिद्धीया अर्जित कर  मानव कल्याण  के सद्कार्यो से जनमानस में  अमिट छाप छोड़ी है ।इन महानायको ने अपने विशिष्ट गुणों के  कारण किसी  न किसी  क्षेत्र  में लोक हित के काम कर  एवं  मार्गदर्शन  देकर अपने सम्मान  को बढ़ाया है  जिसके कारण  वे लोक वंदना के पात्र बन गये।

आज हम एक ऐसे  महानायक  को श्रद्धा पूर्वक स्मरण कर रहे हैं  जिन्हें  भारत ही नहीं  बल्कि  वैश्विक  महापुरुष का दर्जा  हासिल है । अनेक  राष्ट्रीय  व अंतरराष्ट्रीय   सर्वेक्षणों   में  भारत रत्न बाबा साहब डॉ भीमराव  अंबेडकर को दुनिया का सर्वाधिक  प्रतिभाशाली विद्वान होने   के नाते पहचान  मिली है। कोलम्बिया विश्वविद्यालय के  तीन सौ वर्षों   के दरम्यान पढ़ने वाले  सबसे मेधावी विधार्थी के नाते  अंबेडकर का चयन होने के  कारण उन्हें  सिम्बाल ऑफ  नाॅलेज  के सम्मान  से नवाजते हुए  विश्वविद्यालय के  प्रवेश द्वार पर  बाबा साहब  की  भव्य प्रतिमा स्थापित  की गई है ।   बाबा साहब   के  असीम ज्ञान  व मानवता के लिए  किये कार्यों के कारण  संयुक्त राष्ट्र संघ  उनके  जन्मदिन  को विश्व  ज्ञान  दिवस के  रूप  में बहुत  श्रद्धा  से मनाता  है।आज की नई पिढी को शायद  अहसास भी नहीं  हो सकता कि डॉक्टर  अंबेडकर होने  के मायने  क्या है । किसी  को स्कूल  में शेष बच्चों के  जूते रखने  के स्थान पर  बैठना पड़े,प्यास लगने पर  मटके  से पानी  नहीं  पी सके,नाई  बाल काटने मना करे,कोई  आपको स्पर्श  करने से परहेज  करे,साथ  खेलने न दे  और पल प्रतिपल तिरस्कार  उत्पीड़न  व हिकारत  भरा बर्ताव  सहन कर भी  तमाम  विषमताओ  को मात देकर  देश दुनिया  का सर्वाधिक  शिक्षित  व्यक्ति  बनकर  अपनी बौद्धिक  प्रतिभा व संकल्प  का परिचय देकर  विरोधियों को  निरूत्तर कर दे ,यह अविश्वसनीय  व अकल्पनीय कार्य  एकमेव  अंबेडकर ही कर सकता है।भारतीय समाज  व्यवस्था  में हजारों  वर्षों से  बहुजन वर्गों  को  मुख्य धारा से  अलग थलग करके  कथित  उच्च  वर्ण के  लोगों ने  जितना अपमानित तिरस्कृत करके शोषण  किया है,   वह दुनिया में  दुर्लभ  उदाहरण है । आज जिन्हें अनुसूचित   व पिछड़े वर्गों  के नाते पहचाना जाता है, उसे शुद्र मानकर सामाजिक  आर्थिक शैक्षणिक व राजनीतिक  भागीदारी  से वंचित कर  पिछड़ेपन के  अंधकार में  धकेल दिया था ,जिससे इन  पिछडो का जीवन  पशुओं  से भी बदतर हो गया था । डॉक्टर अंबेडकर ने समाज की व्यक्ति निर्मित इस सडी गली व्यवस्था  का दंश झेल कर  यह ध्रुव ध्येय बनाया कि बहुजन समाज  को इस नारकीय  हिकारत  से मुक्ति  दिलाना सबसे जरूरी  काम  है।

 

बाबा साहब  ने बहुत  अभावों, अवरोधो व प्रतिकूलताओ के  बावजूद  उच्च  अध्ययन कर अपने  जीवन  को भारत  के दीन हीन  व नेतृत्व विहीन पशुओं तूल्य जिन्दगी जिने  वाले  लोगों को समर्पित कर दिया  और  अपने  जीवन  का पल पल व खून का कतरा कतरा  न्यौछावर कर दिया ।

डॉ भीमराव  ने सारी वैयक्तिक  इच्छाओ को मार दिया और सुख सुविधा  धन  वैभव  पद प्रतिष्ठा को ठुकरा कर  करोड़ों  लोगों की  मुक्ति  के  संघर्ष पथ को अपनाकर जीवन  पर्यन्त  उस पर कायम रहे।

बाबा साहब  ने  भारतीय संविधान का निर्माण करने में प्रमुख भूमिका निभाई  जिसके  कारण  उन्हें  संविधान  शिल्पी  कहा  जाता है ।आधुनिक भारत  के निर्माण में उनकी  सबसे  अहम भूमिका  रही हैं । अंबेडकर महान दार्शनिक , विचारक, समाजशास्त्री , अर्थशास्त्री , वैज्ञानिक , इतिहासकार, लेखक , पत्रकार , उच्च  कोटि के  वक्ता,  कानूनविद ,शिक्षा शास्त्री  व आध्यात्मिक ज्ञान  से ओतप्रोत महामानव थे। उनके  विषद ज्ञान  व तार्किक बूद्धि का लोहा  दुनिया  मानती थी।

बाबा साहब एक चलता फिरता  विश्वविद्यालय थे।उन्होंने देश  दुनिया  के ज्यादातर   ग्रन्थो का गहन अध्ययन किया था और अनेक  भाषाओं के  ज्ञाता  थे।उनकी चार संतानें व पत्नी  रमाबाई  ईलाज  न मिलने के कारण  असमय काल कवलित  हुए  पर अंबेडकर ने भारत  के करोड़ों  शोषित जन  को  ही अपनी संतान  व परिवार  मानकर  उनकी  आवाज  उठाकर  उनके  हिस्से की  लड़ाई को लडा।बाबा साहब  ने हिन्दू धर्म की जातिय  व्यवस्था को  सिरे से खारिज करते हुए जाति विहीन  व मानवतावादी  समाज के  निर्माण  हेतु  जीवन भर भरसक प्रयास किया । उन्होंने  चावदार तालाब  से पानी  पिने, कालाराम  मंदिर  प्रवेश  सहित  मजदूर  किसान  हितों के  लिए अनेक  आन्दोलन किये।अनेक  पत्र पत्रिकाओं व शोध पत्रों का प्रकाशन कर सामाजिक  व राजनीतिक  चेतना  जगाई ।

बाबा साहब  ने अंग्रेजी हुकूमत  व कांग्रेस  नेतृत्व के  सामने दलित वर्ग  के हितों की प्रभावी  लड़ाई लडकर  अधिकार दिलाये।अनुसूचित जाति  जनजाति  व पिछड़े वर्गों  के आरक्षण का  संविधानिक प्रावधान  किया  जिसने  भारतीय समाज में नव जागृति  लाकर गैर  बराबरी की  व्यवस्था  को कुछ  हद तक रोकने  में अहम भूमिका निभाई है ।

प्रायः यह देखा गया है कि  किसी  व्यक्ति  या समाज  द्वारा  किये दुर्भावनापूर्ण  दुर्व्यवहार के  पूर्वाग्रह से  आम आदमी  विमुक्त  नहीं  हो सकता है,  पर डॉ भीमराव  इसके  अपवाद  है।संविधान को पढ़कर  हम अंदाज  लगा सकते हैं कि  उनका ह्दय कितना  निर्मल व  निष्कपट था, कि  उन्होंने  समाज के  सभी  वर्गों के  कल्याण व बेहतरी  की ईबारत लिखी है।देश के  कानून  व श्रम मंत्री  रहते बाबा साहब  ने  गरीब  मजदूर किसान  युवाओं  व महिलाओं के  प्रति  विशेष  सहानुभूति  रखते हुए  अनेक  कानून  बनाये । बाबा साहब  ने दलितों की  लड़ाई  प्रखरता  से लड़ी परन्तु देश हित  को सदैव  सर्वोपरि  रखा और कभी  किसी  लालच या दबाव  में नहीं  आये।

डॉ अंबेडकर ने हिन्दू धर्म की छुआछूत वाली   लाईलाज बिमारी  से आजिज आकर  अंततः 14 अक्टुबर 1956 को नागपूर की दीक्षा भूमि में  लाखों  अनुयायियों के साथ   समता स्वतंत्रता  बंधुत्व व न्याय  आधारित   महान बौद्ध धर्म  को अपनाया  और बौधिसत्व बने।दिन रात  लगातार  काम करने के कारण  उन्होंने  स्वास्थ्य की  तरफ ध्यान  नहीं दिया,   जिसके  कारण उन्हें  अनेक  असाध्य रोगों  ने जकड़ लिया  और उनका शरीर  कृषकाय हो गया था । दिल्ली में  6 दिसम्बर  1956  को उन्होंने महापरिनिर्वाण प्राप्त किया। करोड़ों  देश  वासियो  को बिलखता छोडकर अलविदा कह गए  बाबा साहब  ने  समाज  को उन्नति  का मार्ग दिखाया, जिसके अनुसरण से ही  आदर्श  समाज  का निर्माण  संभव है ।अंबेडकर ने आजीवन  वर्णवादियो के दिये विष को  पिया  पर बदले मे  देशवासियों को  अमृत  ही दिया। उनकी  ऐसी महानता दुर्लभ व अद्वितीय हैं । उनके  विचार  मानवता की  अनमोल धरोहर हैं , जिन्हें  पढ़ने समझने की  जरूरत है ।

 

एम एल डांगी झाडोली

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