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कविता – सोसियल डिस्टनसिंग

  सोशियल डिस्टेंसिंग
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इतना कहर,थोड़ा ठहर।

ये फासले अच्छे नही,
हम दिलो से है जुड़े,
पर दूरिया बस्ती में है।

यह दौर ऐसा आ गया,       
  जब देश ही नासाज है।।
 न रिश्तो में कोई नुक्स हैं।
ऐहतिहात   है बस रोग से।

हकूमतों संग  अवाम हैं,
थम गये पहिये सभी।
और रास्ते  सब जाम है।
हर जुबा पर कोरोना,
बस एक ही तो नाम है।

हम समझे सारे फर्ज अपना,
मादरे वतन के खातिर।
काम आये अवाम के हित,
खुश होकर उतारे कर्ज अपना।

वक्त ये दुश्वारियो का,
जल्दी पलट के  जायेगा।
दूरिया समाज की ,
मिट जाएगी एहतराम कर।
वो पुराना भाई चारा,
और गले मिलना  हमारा।
एकता हर कौम की,
मुस्कुराती जिंदगी का,
फिर दिखेगा  प्यारा नजारा।

कविता – भूमिपुत्र का दर्द !!! लेखक : एम. एल. डाँगी

भूमिपुत्र का दर्द

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मेहनत ही तकदीर है तेरी,
ओर माथे पर पसीना।
 धीर,सागर की तरह,
 प्रतिपल अभावो संग जीना।

प्रभात  की    पुरवाईया,
तपती दोहपरी का कहर।
साँझ   की  थकान  भी,
 न  रोकते तेरे  कदम।।

फ़टी  आंगी  से  झांकता,

तेरा  ये   तपा   बदन।
न  कोई  गिला    तुझे,
न    अभावो  का  रुदन।।

एक    जोड़ी    बैल  ही तो,
सुख  दुख  के  साथी  है।             
झोपड़ी   महल    सी,
ओर    खेत   ही   जहान  है।।

हर बरस बारिश ही,
अदद  खुशी  की हैं  वजह।

बोझ   घर  का खूब  हैं,
कोई  न आस की जगह।।

बाबा की सांसें उखड़ती,
अकसर अम्मा की बीमारी।
चंदू की तालीम कैसे,
मुनिया की शादी सगाई।

पत्नी  की खुशियां अधूरी,
कर  सका  अब  तक न पूरी।
अन्नदाता  कहलाता  पर,
साहूकारी  ब्याज भारी।।

किसने  कभी भी  सुध ली,
मेरे   खेत खलिहान  की।
कहने   को  देते  दिलासा,
 वो चुनावी ,शर्ते  सुहानी।।

अन्न  के भण्डार भर कर,
पालता हु  देश को।
बरसो  से छलता  रहा  मैं,
फिकर नही इस देश को।
भीख न उपकार कर,
मेरा न उपहास कर।
खेत को पानी मिले,
उपज का सही दाम कर।।

राष्ट्र हित  मेरा  पसीना,
स्वाभिमानी  हूँ किसान।
रहनुमाओ , खेलो न तुम,
मेरे धैर्य और सम्मान  से।।