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लेख – मंगलमुखी समाज पर कोरोना का अमंगल साया !!! #article

*मंगलमुखी समाज पर कोरोना का अमंगल साया *

इस समय फसलों के कटने  के साथ देश प्रदेश में  वैवाहिक ,धार्मिक व सामाजिक आयोजनों का दौर चलता है ।वैवाहिक व मांगलिक आयोजनों के अवसर पर उल्लास और खुशियो को बढ़ाने के लिए लोग  पेशेवराना संगीतकारों और बैंड वालो  की सेवाएं लेते है। बैंड वालो व संगीत का व्यवसाय करने वालो के लिए यह समय सीजन का होता है ,जिसमे ये लोग साल भर  की कमाई  का जुगाड़ करते है।अक्षय तृतीया  वैवाहिक सावो का  अबूझ  मुहूर्त  माना जाता है ।परीक्षाओ के समापन के साथ स्कूल कॉलेजो में अवकाश  पड़ने के कारण ज्यादातर परिवार अपने शादी लायक बच्चो के विवाह एवं अन्य तयशुदा सामाजिक व धार्मिक कार्यक्रमो  का आयोजन करते है ।ऐसे में वे लोग अपने मांगलिक प्रसंगों को रोचक व मनमोहक बनाने के लिए इन संगीत साधको की सेवाएं  लेते है।हम देखते है कि बैंड वाले व संगीतकार कलाकार अपनी सुरीली  संगीत प्रस्तुतियों से यजमान के खास आयोजन   में चार चांद लगा देते है ।कार्यक्रमो में शरीक लोग इनकी कलाकारी पर मुग्ध होकर नाचने पर मजबूर हो जाते है।

    इस समय हमारा देश प्रदेश ही नही बल्कि पूरी दुनिया  कोरोना महामारी से बचाव की भरसक लड़ाई लड़ रहे है। पूरे देश और सभी राज्यो में सम्पूर्ण लॉक डाउन  व अनेक जगह कर्फ्यू लगाया गया है ।केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा अपने नागरिकों  की जान बचाने हेतु कड़े सुरक्षात्मक उपाय किये है जिसका दंश पूरा समाज झेल रहा है। सारे वैवाहिक ,धार्मिक , सामाजिक ,राजनीतिक व शैक्षणिक कार्यक्रम प्रतिबंधित कर दिए है जिसकी बहुत जरूरत भी है। कोविड़ 19 महामारी को देखते हुए आमजन ने भी अपने सभी प्रकार के आयोजनों को स्थगित कर दिया है।यदि किसी ने अपवाद स्वरूप शादी ब्याह किया भी है तो मात्र दो पांच लोगों की उपस्थिति में औपचारिकता निभाई होगी वह भी कोरोना प्रोटोकॉल का पूर्ण पालन करते हुऐ।
 जब सबकुछ लॉक डाउन  हो चुका है तो  ऐसे हालात में बैंड बजाने व संगीत के व्यवसाय से जुड़े लोगों  के   लिए हालात बहुत मुश्किलात भरे हो गये है ।वैवाहिक व अन्य आयोजनों की तिथियो को लेकर किये गए समस्त  अनुबंध स्वतः निरस्त हो चुके है जिससे आर्थिक रूप से कमजोर इन कलाकार मजदूरों  की कमर पूरी तरह टूट चुकी है । पूरे वर्ष भर  इन लोगो को इस सीजन की बेसब्री से प्रतीक्षा रहती है क्योकि इसी दौर में  ये  संगीत साधक मजदूर   वर्षभर की  घर चलाने लायक कमाई कर लेते है परन्तु इस बार ऐसा नही है।कोरोना वायरस की अमंगलकारी दस्तक ने इस व्यवसाय से जुड़े  गरीब लोगों की रोजी रोटी  का जरिया ही समाप्त कर दिया है ।आज ज्यादातर परिवार फांका कशी के संकट से जुंझ रहे है ।लॉक डाउन की वजह से  बैंड व गाने बजाने के धंधे पर पूर्णतया  निर्भर लोग दूसरा कोई  रोजगार भी नही कर पा रहे है ।
  जहाँ तक बैंड बजाने और गाने बजाने से जुड़े लोगों का सवाल है तो इसमें ज्यादातर  परिवार परम्परागत  रूप से अनुसूचित व अल्पसंख्यक वर्ग के तबके ही शरीक है । यह धंधा सीजनल ही चलता है  और साल के अन्य दिनों में कभी कभार ही काम मिलता है । बेंड वाले लोग  खाली समय मे गाने बजाने का रियाज करते है ताकि  अनुबंधित तिथियो पर बढ़िया से बढ़िया प्रस्तुति दे सके।  बैंड पार्टी चलाने वाले लोग अपनी जरूरत के लिहाज से महीने ओर साल के हिसाब से कलाकारों को अनुबंधित करके उन्हें अग्रिम रकम देकर  निवेश करते है साथ ही  आवश्यकतानुसार साजो सामान ओर वाद्ययंत्र खरीदते है  जिससे  उनकी साख व रुतबा बना रहे। इसके लिए लाखों रुपयों का कर्ज करते है परंतु इस बार कोरोना संकट ने इन लोगो को तबाह करके कही का नही रखा।
        मुख्यधारा से कटा हुआ सर्वथा उपेक्षित और नेतृत्वहीन यह कलाकार तबका आज अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रहा है ।किसी को कही से कोई उम्मीद नजर नही आती।सरकारों द्वारा भी कभी इस कला उपासक संगीतकारो की तरफ कोई ध्यान देने की जहमत नही उठाई।सभी सुविधाओं  से महरूम यह  वर्ग   अपने परिवार और  बच्चो के सुनहरे भविष्य को लेकर बहुत  हताश है और सरकारों से  उम्मीद करता है कि उनकी कोई सुध ले ।इनके लिए अच्छी तालीम के लिए सुविधायुक्त आवासीय  विद्यालय खोलते हुये इन परिवारों को विशेष पहचान पत्र जारी कर  तमाम सरकारी योजनाओं का लाभ मिले जिससे  इनकी मद्धम पड़ती जिन्दगी में उम्मीद  की लौ   रोशनी कर सके।

निबन्ध – डॉ. बाबासाहेब भीमराव अंबेडकर जयंती ।#article



 14 अप्रेल भारत रत्न बाबासाहब भीमराव अंबेडकर जी की जयंती है।सम्पूर्ण भारत सहित विश्व के ज्यादातर देशों में बाबासाहब को मानवता के लिए किए गए अप्रतिम योगदान के लिये  विनम्रतापूर्वक याद करते हुये उनके प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की जाती है।यू तो दुनिया मे अनेक महापुरुष हुए है जिन्होंने तत्कालीन परिस्थियो में  आमजन को नेतृत्व ओर दिशा दी है और पारिस्थिक समस्याओं और संकटो में योग्य राह दिखाई है ।अनेक महापुरुषों ने अपनी विशिष्ट विचारधारा का प्रतिपादन किया है परन्तु कई विचारधाराएं उस महापुरुष के जीवन काल मे ही चरमोत्कर्ष से रसातल को पहुँच गई और अनेक निष्प्रभावी या कालबाह्य हो गई।
        बाबासाहब अम्बेडकर की विचारधारा  के संदर्भ में बात करे तो हम पाते है कि उनकी अपनी कोई वैयक्तिक विचारधारा अथवा विशिष्ट कार्य पद्धति नही थी बल्कि उनकी विचारधारा सनातन मानवतावादी  करुणा मैत्री और समतावादी थी जो युगों युगों से मानवसंस्कृति की अभिन्न जरूरत ओर उपयोगिता को दर्शाने वाली थी जिसे  महात्मा बुद्ध  भगवान  महावीर संत कबीर सन्त रविदास   संत तुकाराम सन्त गाडगे राष्ट्रपिता महात्मा फुले  जैसे अनेकानेक महापुरुषों ने अपने ज्ञान चिंतन से  प्रकट करते हुऐ सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय के उदात्त भाव से प्रवृत्त किया है।।   
      बाबासाहब ने सभी धर्मों सभी विचारधाराओं समस्त पौराणिक ग्रंथों ओर शास्त्रों का गम्भीरतापूर्वक अध्ययन मनन ओर स्वाध्याय कर  समता स्वतन्त्रता बन्धुत्व और न्याय आधारित आदर्श समाज के निर्माण की कारक विचारधारा को आगे बढ़ाया और उसके लिए जीवंत पर्यन्त पराकाष्ठा की सीमा तक जाकर  कार्य किया क्योंकि यही मानवतावादी और समतावादी चिंतन प्रायः सभी धर्मों का सार रूप है ।यह बात अलग है कि अनेक धर्मो सम्प्रदायों और विचारधाराओं को वैयक्तिक स्वार्थवश अथवा खण्डित सोच के कुटिल ओर पाखंडी लोगो ने उसमे विकृतियों का बीजारोपण करके उन्हें दूषित कर दिया जिसके दुष्परिणाम  समाज मे अकसर हमे दृष्टिगोचर होते रहते है।


डॉक्टर अम्बेडकर एक व्यक्ति नही बल्कि एक सुखदायी सोच है जो सबके कल्याण की कामना  के लिये समर्पित है।अनेक लोगों ने अम्बेडकर को पढ़ा नही यदि पढ़ा तो ठीक से जाना नही ओर जाना तो  हूबहू माना नही।किसी ने उन्हें वंचित समाज का नेता माना  तो पिछड़े ओर शोषित समाज ने उन्हें अपने समुदाय तक सीमित करने का अनर्थ किया है ।यहाँ गलतिया दोनो तरफ़ से हुई और राजनीति ने उसमे अपने हित अहित को देखकर तड़का लगाने और विभेदों को बढ़ाने में कोई कसर नही रखी।आज इसी का  दुष्परिणाम है कि अम्बेडकर को लेकर अपने तर्क वितर्कों के साथ लोग आपसी सौहार्द को ध्वस्त करने से बाज नही आ रहे।
      अम्बेडकर ने अपने जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त जो सामाजिक तिरस्कार अपमान  प्रताड़ना झेली ,दुनिया इतना बड़ा विद्वान होने के बावजूद जो अभाव उन्होंने सहे,अपना परिवार दाने दाने को तरसा ओर उनके बच्चे ईलाज के अभाव में कालकवलित हुये ओर उन्हें कफ़न तक नसीब न हुआ ,क्या हमारे बस में है उस विषमता ओर वेदना को समझना ।नही कत्तई नही ।हमारी तुच्छ ओर स्वार्थपरक सोच की क्षमता ही नही की उनके मनोभावों को समझ सके।इतना सब होने के बावजूद जब उन्हें संविधान निर्माण का अवसर मिला तो उन्होंने बहुत उदारता करुणा और ज्ञान गम्भीर गहराई से सबके लिए       कल्याणकारी भावनाओ का संविधान में प्रकटीकरण करके उसे मूर्तरूप दिया।आज हम उसी संविधान की छत्रछाया में पल्लवित होकर अपने जीवन को उन्नति की ओर आगे बढ़ा रहे है।
  दरअसल हम  स्वार्थ वादी ओर विखंडनवादी सोच से ऊपर उठकर देखेंगे तो पाएंगे कि बाबासाहब  महान राष्ट्रपुरुष थे जिन्होंने आधुनिक भारत के नवनिर्माण में अपने आप को आहूत कर दिया।वे महान राष्ट्रभक्त ओर युगदृष्टा थे जिनके लिये समस्त देशवासी ही नही बल्कि मानवमात्र एक परिवार था और जिओ ओर जीने दो के सिंद्धान्त को हृदय से मानने वाले थे।
       हम  अम्बेडकर को मूर्तियो   में न तलाशे ,वे खुद व्यक्तिपूजा के खिलाफ थे।उनकी बताई शिक्षाओं को समझने और उसपर अमल करके मानवता वादी विचारधारा को बढ़ाकर जन्मगत, जातिगत, भाषागत ,क्षेत्रगत , नस्लीय  ,गरीबी अमीरी की न्यूनतागत सोच से ऊपर उठकर    सबल संगठित और समतावादी समाज की रचना करने में खुद को समर्पित करने की जरूरत है ।अम्बेडकर की महानता ओर उनके दर्शन को धीरे धीरे समझकर मानवकल्याण में लगना ही उस महामानव के लिये सच्ची भावांजलि होगी ।जय भीम जय भारत।  
माल्यार्पण करते हुए अनुयायी, सोसल डिस्टेंस का ध्यान रखते हुए। पिंडवाड़ा

निबन्ध – कोविड19 और धार्मिक पलायन #article

*कोविड 19और धार्मिक पलायन*:-
कोरोना वायरस का संक्रमण वैश्विक अभिशाप के रूप में मानव जीवन के अस्तित्व के लिए बड़ा संकट बनकर दुनिया के ज्यादातर देशों में अपनी मनहूस दस्तक दे चुका है ।वैसे तो दुनिया मे विश्वयुद्धों सहित अनेकानेक संकट और विषम परिस्थितिया उत्पन्न होती रही है ,परन्तु कोरोना ने  दुनिया के जितने बड़े भू भाग और जनसंख्या को  प्रभावित किया है,वह अपने आप मे अभूतपूर्व है।दुनिया के तमाम प्रगतिशील और विकसित देशों को भी झकझोर दिया है ।तकनीकी रूप से सुसम्पन्न देश भी भयाक्रांत हो चुके है।अनेक देश अपने हजारो नागरिकों को कालकवलित होते हुये देखकर  भी बेबस है।यह वायरस गरीब अमीर जाति धर्म व क्षेत्र का भेद किये बिना  सबको अपने क्रूर शिकंजे में जकड़ रहा है।अनेक राष्ट्राध्यक्ष व दुनिया के शीर्ष  और सुरक्षित लोग भी इस महामारी की चपेट में  आ चुके है।
     अमेरिका ब्रिटेन स्पेन  फ्रांस ईटली जर्मनी जापान  चाइना ओर सऊदी अरब  सहित अनेक प्रभावशाली ओर सम्पन्न देश भी अपने नागरिकों का बचाव नही कर पा रहे है । दिसम्बर 2019 से लेकर आज तक  इस वायरस का कहर उत्तरोत्तर  बढ़ रहा है और आगे भी इसका जानलेवा प्रसार होने का अंदेशा  जानकारों द्वारा व्यक्त किया जा रहा है।कोरोना  महामारी के कदम थमने का नाम नही ले रहे।यह मानविय जीवन पर ऐसा प्रहार है कि  कोई उपाय   फिलहाल नही दिखता ,अभी तक इसकी कोई वेक्सीन  भी ईजाद नही हुई है ।प्रमाणिक ओर विशेषिकृत ईलाज न होने के   कारण   कोई उपाय व उपचार  भी कारगर साबित नही हो रहा ।अनेक देशों में लाशो के ढेर और कब्रिस्तानों  में दफनाने की समस्या भयावह है।मृतक व्यक्तिओ के परिजनों को दाहसंस्कार  से दूर  रखना भी त्रासदीपूर्ण है।
दुनिया मे इंसान ने भौतिक विकास के साथ साथ धर्म और अध्यात्म को भी अपनाकर उसे अपने जीवन के लिए आवश्यक माना है।अनेक लोग धर्म को नकार कर नास्तिक बन गये, उनका मानना है कि यह दुनिया प्राकृतिक  कारणों और क्रियाओं से करोड़ो वर्षो में विकसित हुई है ओर धीरे धीरे  मानव जीवन का विकास हुआ है ।वे किसी ईश्वर अथवा अलौकिक शक्ति को सिरे से  खारिज करते उहै।ऐसे नास्तिक लोगो का  यह भी मानना है कि ईश्वर ,देवता या पैगम्बर इंसानों ने अपने स्वार्थ के लिये  बनाकर इनके व धर्म  उपासना के नाम पर लोगो का शोषण करते है। नास्तिक मानते है कि ईश्वर ने इंसान को नही बल्कि इंसान ने  ईश्वर का सृजन किया है।वे अपने पक्ष में दलील देते हुये कहते है कि  जहाँ इंसान रहता है वही ईश्वर के मंदिर मस्जिद या स्थान मिलते है ।किसी ऐसी जगह ईश्वर होने का  कोई प्रमाण नही मिला जहाँ इंसान अभी तक नही पहुच पाया है।नास्तिक लोगो की ठोस दलील है कि ईश्वर अल्लाह को किसी ने आज तक देखा ही नही।अप्रमाणिक कथा कहानियों और धार्मिक पुस्तको में ईश्वर  के बारे में लिखा वर्णन मिलता है ।ईश्वर की प्रत्यक्ष उपस्थित किसी ने  महसूस नही की ।
भगवान की मूर्ती को मास्क पहनाया गया !

हम देखते है कि आये दिन मासूम ओर अबोध बच्चो  के साथ बर्बर  दुष्कर्म ,उनकी निर्मम हत्या ,भूख प्यास से दम तोड़ते लोगो की वेदना देखकर भी  ईश्वर कभी मदद को नही पहुँचा।हालांकि दुनिया मे ऐसे नास्तिक लोगो की  तादाद अपेक्षाकृत कम है।
   संसार की  बहुत बड़ी आबादी आज भी ईश्वर के प्रति गहरी आस्था रखने के कारण धर्म और अध्यात्म  से अपने को जुड़ा मानते है ।ये लोग धर्म को जीवन का आधार मानते है और अपनी  नित्य की दिनचर्या  में  इसका पालन भी करते है। हिन्दू ईसाई यहुदी पारसी  इस्लाम व बौद्ध जैसे प्रमुख धर्मो के अलावा  जैन सिख व लिंगायत आदि अनेकानेक पंथ और मत सम्प्रदाय है।आदिवासी लोग प्रकृति को पूजते है एवं अपनी स्थानीय परिस्थितियो और मान्यताओं के अनुसार धार्मिक देवता व प्रतीकों का पूजन करते है।
    धार्मिक लोगो को ईश्वर से बहुत उम्मीद होती है ।ज्यादातर लोगों का यकीन होता है कि उनकी मुसीबतों ओर संकटो में ईश्वर उन्हें सहारा देगा ,उन्हें राह दिखायेगा और आसन्न समस्याओं से निजात दिलवाएगा ।अपनी समस्याओं  के निवारण के लिए  वह मन्दिर गिरजाघर गुरुद्वारा और मस्जिद इत्यादि धार्मिक स्थानों पर जाता है ,मन्नते मांगता है ,प्रार्थना करता है ,पूजा करता है एवं कई बार धार्मिक विधि विधान  भी करवाता है ।इतना ही नही  धार्मिक व्यक्ति अपने  कार्यो की सिद्धि  और  समस्याओं के निराकरण हेतु विशेष पूजा पाठ जप तप तंत्र मंत्र हवन यज्ञ  और अन्यान्य उपायों का  सहारा भी लेता है ।धार्मिक स्थानों पर दान पूण्य  चंदा देकर बदले में अपनी  व परिवार  की खुशहाली  और कुशलता चाहता है ।एक धार्मिक व्यक्ति को  अपने  ईष्ट के प्रति  बहुत आस्था और  विश्वास होता है और उसका परम्  विश्वास होता है कि उसका आराध्य बहुत ताकतवर होता है ,जिसके सामने  सांसारिक समस्याये और बीमारिया आदि तुच्छ है।
          आज के हालात की बात करे तो  सबसे ज्यादा पशोपेश में और किंकर्तव्यविमूढ़  यही धार्मिक और आध्यात्मिक  लोग है।कोरोना वायरस  को लेकर  उत्पन्न वैश्विक संकट में उनसे न कुछ कहते बन  रहा है  न कुछ करते बन रहा  हैं क्योकि  उनकी आशा और अपेक्षाओं  के विपरीत  एक  अदृश्य व तुच्छ वायरस ने सारे मन्दिर मस्जिद गिरजाघर  गुरुद्वारा मठ और उनके  आध्यात्मिक आस्था के केंद्रों को बंद करवा दिया है।जो पुजारी  फादर  मौलवी  पण्डित धर्मगुरु  कथाकार  रात दिन  आस्था और  विश्वास  की घुट्टीया पिलाते   थे एवं
खुद को ईश्वर के प्रतिनिधि बनाकर आस्थावान लोगो का ईश्वर से सम्पर्क संवाद कराके उनकी  समस्याओं और कष्टों को मिटाने में  सहायक  बनने और सिफारिश करने का विश्वास  दिलाते थे ,वे सब नदारद हो गये है।अफसोस कि दुनिया के नामचीन और चमत्कारिक धार्मिक केंद्र  मक्का मदीना, वेटिकन का गिरजाघर , शिरडी  का साई धाम , चारधाम ,शक्तिपीठ  ज्योतिर्लिंग और बालाजी धाम  आदि आदि सभी तो बन्द है।जब इंसान सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है और उसे जीवन बचाने के लिये सबसे ज्यादा  इन देवी देवताओं पीर पैगम्बरों ओर देवदूतों की जरूरत है तब सभी  आस्था केंद्रों के दरवाजो पर ताले लगे है।पूजा पाठ  नमाज  यज्ञ प्रार्थनाएं  आदि अनुष्ठान धार्मिक केंद्रों से सिमटकर  व्यक्तिगत स्तर पर घरों में होने लगे है ।
          आज यह विशाल और अत्यंत प्रभावशाली धार्मिक  नेतृत्वकर्ता वर्ग भयातुर है ।कोई प्रार्थना  दुआ  ईबादत या मन्त्र  काम नही आ रहा है ।बस एक ही उपाय है  भौतिक दूरिया  स्वच्छता ओर सावधानियां ।यदि कोई भी व्यक्ति  कोरोना संक्रमित  होता है तो अस्पताल के सिवाय कोई सहारा नही है ।आज अस्पतालों में जान जोखिम में डाल कर विषम परिस्थितियो में  रातदिन  काम करने वाले चिकित्सको और अस्पताल कर्मियों में साक्षात देवत्व झलकता है ।
      आस्थावान लोगो के लिए  यह  दौर बहुत विचारणीय व असमंझस  भरा है ।उन्हें अंदर ही अंदर यह सवाल सालता है कि  उन्होंने जिस आराध्य  को इतने विश्वास और उम्मीद  से ईबादत करते हुऐ माना है  उन्ही  उम्मीद के उपासना केंद्रों ने अपने  दरवाजे भक्तो के लिये  बन्द कर दिये है । हालांकि आजतक किसी ने ईश्वर को देखा तो नही है पर उसकी आस्था व धार्मिक केंद्रों का बन्द होना और ईश्वर की दुहाई देकर आमजन को ठगने व छलने वाले धार्मिक  प्रतिनिधियो का पलायन वाकई दुखदायी तो है ,पर सबक सिखाने वाला  भी है ।कोरोना वायरस संक्रमण का भयावह दौर  नई सोच को विकसित करने का सौपान बनेगा ।जय भारत जय भारत।

Essay – Major changes, expected in traditions of indian families post corona pandemic

*Major changes, expected in tradition of indian families post corona pendamic*

What if social gatherings will be avoided, like a big fat indian wedding will converted into just a family task of few close people.
What if we can’t call a far standing people just by watching his/her face because his face is covered with masks ? .This corona virus, makes physically impact but it is going to be more than that in every aspect of mankind.
Below, we will discuss that what corona make impact on traditions of indian families.
*Greetings*

The indian family’s, greeting going to change a lot due to corona. India had many religions and their unique way of greetings are practiced.
* Let’s take Hindu greetings, touching feets to elder (Pranaam) and putting hand on the head to the younger(Ashirvaad). After this pandemic, the touching will be avoided and rather will use joining hands ‘Namaste’.
I must add that a hindu community Devasi (also known rebari) greeting people by kissing their hands. And it will be difficult to the community to change and accept a different greeting style.
*Muslim usually hug a number of times each other as greeting (Muanakka), it should be avoided and use ‘Salaam’ lifting right hand to the forehead.
And many ways greeting practices should change after this problem.

*Marriages*
India always highlighted for the indian wedding traditions. The panditji, caterers, sound artist, decoration, guards etc. are the people of 100+ going to reduced just to avoid such large gatherings and relatives will be countable.
Many customs and tradition related to bride and  bridegroom will be practiced with care or else will be avoided.
*Suspecting eyes towards a unhealthy/sick person*

Whether it is cousin or own sibbling, it will going to make a meter distance if he/she is coughing or sneezing more than one time. And will be seen as suspection of corona or any other disease.

Tradition is to take ritual baths in ganga, attending kumbh, hajj pilgrimage will be surely impacted by the covid.
The corona dilemma reached to the villages, so it will be not easy to draw out the fear from the people.
*Just as example – 10 rupees coin was banned as it was spread in the villages, now the govt. sent messages to every mobile that 10 rupees coins are allowed but still they don’t accept in villages.*

Way forward,
For the indian families it will not going to hard, as they were moving to the western fashions. Shaking hands and hugging. Now Namastey is accepted all over the world.
 And in weddings, large gatherings costs a lot to the hosting family. Now they will get some relief and not just the sake of society to impress.
*Cleanliness* in every work will be prior as in tradition or having food.

Rivers are more clean in one month than the govt.’s many scheme and money funding.
Now, if indian family don’t reflect back as before, it will be good for nature and the traditional ‘ganga maiyya’ and the mother rivers.
It is questionable to every believer that what we made to the nature ?, We thought we were doing for god ?.