कोरोना वायरस का संक्रमण वैश्विक अभिशाप के रूप में मानव जीवन के अस्तित्व के लिए बड़ा संकट बनकर दुनिया के ज्यादातर देशों में अपनी मनहूस दस्तक दे चुका है ।वैसे तो दुनिया मे विश्वयुद्धों सहित अनेकानेक संकट और विषम परिस्थितिया उत्पन्न होती रही है ,परन्तु कोरोना ने दुनिया के जितने बड़े भू भाग और जनसंख्या को प्रभावित किया है,वह अपने आप मे अभूतपूर्व है।दुनिया के तमाम प्रगतिशील और विकसित देशों को भी झकझोर दिया है ।तकनीकी रूप से सुसम्पन्न देश भी भयाक्रांत हो चुके है।अनेक देश अपने हजारो नागरिकों को कालकवलित होते हुये देखकर भी बेबस है।यह वायरस गरीब अमीर जाति धर्म व क्षेत्र का भेद किये बिना सबको अपने क्रूर शिकंजे में जकड़ रहा है।अनेक राष्ट्राध्यक्ष व दुनिया के शीर्ष और सुरक्षित लोग भी इस महामारी की चपेट में आ चुके है।
अमेरिका ब्रिटेन स्पेन फ्रांस ईटली जर्मनी जापान चाइना ओर सऊदी अरब सहित अनेक प्रभावशाली ओर सम्पन्न देश भी अपने नागरिकों का बचाव नही कर पा रहे है । दिसम्बर 2019 से लेकर आज तक इस वायरस का कहर उत्तरोत्तर बढ़ रहा है और आगे भी इसका जानलेवा प्रसार होने का अंदेशा जानकारों द्वारा व्यक्त किया जा रहा है।कोरोना महामारी के कदम थमने का नाम नही ले रहे।यह मानविय जीवन पर ऐसा प्रहार है कि कोई उपाय फिलहाल नही दिखता ,अभी तक इसकी कोई वेक्सीन भी ईजाद नही हुई है ।प्रमाणिक ओर विशेषिकृत ईलाज न होने के कारण कोई उपाय व उपचार भी कारगर साबित नही हो रहा ।अनेक देशों में लाशो के ढेर और कब्रिस्तानों में दफनाने की समस्या भयावह है।मृतक व्यक्तिओ के परिजनों को दाहसंस्कार से दूर रखना भी त्रासदीपूर्ण है।
दुनिया मे इंसान ने भौतिक विकास के साथ साथ धर्म और अध्यात्म को भी अपनाकर उसे अपने जीवन के लिए आवश्यक माना है।अनेक लोग धर्म को नकार कर नास्तिक बन गये, उनका मानना है कि यह दुनिया प्राकृतिक कारणों और क्रियाओं से करोड़ो वर्षो में विकसित हुई है ओर धीरे धीरे मानव जीवन का विकास हुआ है ।वे किसी ईश्वर अथवा अलौकिक शक्ति को सिरे से खारिज करते उहै।ऐसे नास्तिक लोगो का यह भी मानना है कि ईश्वर ,देवता या पैगम्बर इंसानों ने अपने स्वार्थ के लिये बनाकर इनके व धर्म उपासना के नाम पर लोगो का शोषण करते है। नास्तिक मानते है कि ईश्वर ने इंसान को नही बल्कि इंसान ने ईश्वर का सृजन किया है।वे अपने पक्ष में दलील देते हुये कहते है कि जहाँ इंसान रहता है वही ईश्वर के मंदिर मस्जिद या स्थान मिलते है ।किसी ऐसी जगह ईश्वर होने का कोई प्रमाण नही मिला जहाँ इंसान अभी तक नही पहुच पाया है।नास्तिक लोगो की ठोस दलील है कि ईश्वर अल्लाह को किसी ने आज तक देखा ही नही।अप्रमाणिक कथा कहानियों और धार्मिक पुस्तको में ईश्वर के बारे में लिखा वर्णन मिलता है ।ईश्वर की प्रत्यक्ष उपस्थित किसी ने महसूस नही की ।
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भगवान की मूर्ती को मास्क पहनाया गया ! |
हम देखते है कि आये दिन मासूम ओर अबोध बच्चो के साथ बर्बर दुष्कर्म ,उनकी निर्मम हत्या ,भूख प्यास से दम तोड़ते लोगो की वेदना देखकर भी ईश्वर कभी मदद को नही पहुँचा।हालांकि दुनिया मे ऐसे नास्तिक लोगो की तादाद अपेक्षाकृत कम है।
संसार की बहुत बड़ी आबादी आज भी ईश्वर के प्रति गहरी आस्था रखने के कारण धर्म और अध्यात्म से अपने को जुड़ा मानते है ।ये लोग धर्म को जीवन का आधार मानते है और अपनी नित्य की दिनचर्या में इसका पालन भी करते है। हिन्दू ईसाई यहुदी पारसी इस्लाम व बौद्ध जैसे प्रमुख धर्मो के अलावा जैन सिख व लिंगायत आदि अनेकानेक पंथ और मत सम्प्रदाय है।आदिवासी लोग प्रकृति को पूजते है एवं अपनी स्थानीय परिस्थितियो और मान्यताओं के अनुसार धार्मिक देवता व प्रतीकों का पूजन करते है।
धार्मिक लोगो को ईश्वर से बहुत उम्मीद होती है ।ज्यादातर लोगों का यकीन होता है कि उनकी मुसीबतों ओर संकटो में ईश्वर उन्हें सहारा देगा ,उन्हें राह दिखायेगा और आसन्न समस्याओं से निजात दिलवाएगा ।अपनी समस्याओं के निवारण के लिए वह मन्दिर गिरजाघर गुरुद्वारा और मस्जिद इत्यादि धार्मिक स्थानों पर जाता है ,मन्नते मांगता है ,प्रार्थना करता है ,पूजा करता है एवं कई बार धार्मिक विधि विधान भी करवाता है ।इतना ही नही धार्मिक व्यक्ति अपने कार्यो की सिद्धि और समस्याओं के निराकरण हेतु विशेष पूजा पाठ जप तप तंत्र मंत्र हवन यज्ञ और अन्यान्य उपायों का सहारा भी लेता है ।धार्मिक स्थानों पर दान पूण्य चंदा देकर बदले में अपनी व परिवार की खुशहाली और कुशलता चाहता है ।एक धार्मिक व्यक्ति को अपने ईष्ट के प्रति बहुत आस्था और विश्वास होता है और उसका परम् विश्वास होता है कि उसका आराध्य बहुत ताकतवर होता है ,जिसके सामने सांसारिक समस्याये और बीमारिया आदि तुच्छ है।
आज के हालात की बात करे तो सबसे ज्यादा पशोपेश में और किंकर्तव्यविमूढ़ यही धार्मिक और आध्यात्मिक लोग है।कोरोना वायरस को लेकर उत्पन्न वैश्विक संकट में उनसे न कुछ कहते बन रहा है न कुछ करते बन रहा हैं क्योकि उनकी आशा और अपेक्षाओं के विपरीत एक अदृश्य व तुच्छ वायरस ने सारे मन्दिर मस्जिद गिरजाघर गुरुद्वारा मठ और उनके आध्यात्मिक आस्था के केंद्रों को बंद करवा दिया है।जो पुजारी फादर मौलवी पण्डित धर्मगुरु कथाकार रात दिन आस्था और विश्वास की घुट्टीया पिलाते थे एवं
खुद को ईश्वर के प्रतिनिधि बनाकर आस्थावान लोगो का ईश्वर से सम्पर्क संवाद कराके उनकी समस्याओं और कष्टों को मिटाने में सहायक बनने और सिफारिश करने का विश्वास दिलाते थे ,वे सब नदारद हो गये है।अफसोस कि दुनिया के नामचीन और चमत्कारिक धार्मिक केंद्र मक्का मदीना, वेटिकन का गिरजाघर , शिरडी का साई धाम , चारधाम ,शक्तिपीठ ज्योतिर्लिंग और बालाजी धाम आदि आदि सभी तो बन्द है।जब इंसान सबसे बुरे दौर से गुजर रहा है और उसे जीवन बचाने के लिये सबसे ज्यादा इन देवी देवताओं पीर पैगम्बरों ओर देवदूतों की जरूरत है तब सभी आस्था केंद्रों के दरवाजो पर ताले लगे है।पूजा पाठ नमाज यज्ञ प्रार्थनाएं आदि अनुष्ठान धार्मिक केंद्रों से सिमटकर व्यक्तिगत स्तर पर घरों में होने लगे है ।
आज यह विशाल और अत्यंत प्रभावशाली धार्मिक नेतृत्वकर्ता वर्ग भयातुर है ।कोई प्रार्थना दुआ ईबादत या मन्त्र काम नही आ रहा है ।बस एक ही उपाय है भौतिक दूरिया स्वच्छता ओर सावधानियां ।यदि कोई भी व्यक्ति कोरोना संक्रमित होता है तो अस्पताल के सिवाय कोई सहारा नही है ।आज अस्पतालों में जान जोखिम में डाल कर विषम परिस्थितियो में रातदिन काम करने वाले चिकित्सको और अस्पताल कर्मियों में साक्षात देवत्व झलकता है ।
आस्थावान लोगो के लिए यह दौर बहुत विचारणीय व असमंझस भरा है ।उन्हें अंदर ही अंदर यह सवाल सालता है कि उन्होंने जिस आराध्य को इतने विश्वास और उम्मीद से ईबादत करते हुऐ माना है उन्ही उम्मीद के उपासना केंद्रों ने अपने दरवाजे भक्तो के लिये बन्द कर दिये है । हालांकि आजतक किसी ने ईश्वर को देखा तो नही है पर उसकी आस्था व धार्मिक केंद्रों का बन्द होना और ईश्वर की दुहाई देकर आमजन को ठगने व छलने वाले धार्मिक प्रतिनिधियो का पलायन वाकई दुखदायी तो है ,पर सबक सिखाने वाला भी है ।कोरोना वायरस संक्रमण का भयावह दौर नई सोच को विकसित करने का सौपान बनेगा ।जय भारत जय भारत।