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वैश्विक महामारी कोविड 19 से बचाव के लिए दुनिया भर के चिकित्सा विज्ञानियों द्वारा सर्वसम्मत उपाय बताया है शारीरिक दूरी बनाकर रहना । यह वायरस व्यक्तिगत सम्पर्क से तुरन्त फैलता है इसलिये इससे बचने के लिए संक्रमित व्यक्ति का स्पर्श न किया जाय और उससे दूरी बनाकर रखते हुये उसके स्पर्श किये कपड़ो या अन्य वस्तुओं को न छुआ जाय।कोरोना संक्रमण को रोकने का यही कारगर तरीका है ।जब भी कोई व्यक्ति संक्रमित होता है तो सबसे पहले उसे परिवार व अन्य लोगो से अलग रखा जाता है ताकि उससे स्पर्श या सम्पर्क में आकर अन्य लोग संक्रमण का शिकार न हो सके।सरकारी बोलचाल ओर मीडिया द्वारा इसे सामाजिक दूरी (सोशल डिस्टेंसिंग ) के नाम से पुकारा जा रहा है , जो सही नही है।वास्तव में यह सामाजिक दूरी (सोशल डिस्टेंसिंग)नही बल्कि शारीरिक या भौतिक दूरी ( फिजिकल डिस्टेंस)बनाकर ही इस संक्रमण से हम बचाव कर सकते है।जब तक किसी संक्रमित बीमार व्यक्ति के सम्पर्क में हम नही आएंगे ,तब तक पूरी तरह सुरक्षित रह सकते है।शारीरिक स्पर्श के अलावा बीमार व्यक्ति के खांसने ,छिकने, उसके कपड़ो या अन्य वस्तुओं के स्पर्श से भी हम संक्रमित हो सकते है इसलिए ऐसे बीमार लोगो से पर्याप्त दूरी बनाकर ही महफ़ूज रह सकते है।
कोरोना महामारी के कारण देश भर में लॉक डाउन किया गया है ।बाहर से आने वाले प्रवासियों की स्वास्थ्य जाँच करते हुये इन लोगो को सुरक्षित व एकाकी स्थानों या घर पर कोरण्टाईन किया जाता है ,जिससे कोई संक्रमित व्यक्ति अन्य लोगो मे संक्रमण न फेला सके।इस वायरस के संक्रमण की पुष्टि होने में करीब दो सप्ताह तक का समय लग जाता है।
हमारे देश मे करीब दो महीने से ज्यादा समय से लॉक डाउन है, जिसमे समस्त शैक्षणिक संस्थान, व्यवसायिक ओर औधोगिक प्रतिष्ठान ,निर्माण कार्य ,समस्त परिवहन व्यवसाय और कामगार गतिविधियो पर पूरी तरह से रोक लगाते हुये लोगो को अपने घरों में बंद रहते हुए किसी के सम्पर्क में न आने सहित अनेकानेक मार्गदर्शक वर्जनाएं लागू की गई थी, जो आज भी कही न कही किसी न किसी रूप में जारी है ।जहाँ संक्रमण का फैलाव है ,उसे रेड जॉन मानते हुए धारा 144 लगाकर समस्त नागरिक गतिविधिया स्थगित की जाती है। इस लॉक डाउन की पालना करवाने के लिये शासन प्रशासन द्वारा बहुत समझाईश करने के बावजूद न मानने पर थोड़ी सख्ती भी बरती जा रही है।
सारे रोजगार बन्द होने से मजदूर और छोटा व्यवसायी वर्ग बेरोजगार हो गया है व भुखमरी का शिकार होकर लाखो करोडो की तादाद में लोग पलायन करके अपने गृह प्रदेश और गांवो की ओर निकल पड़े है। रेल बस टैक्सी सहित सभी परिवहन स्थगित होने के कारण व कोई साधन न मिलने के कारण ये मजदूर लोग सेकड़ो हजारो किलोमीटर की यात्रा पर पैदल ही चल पड़े है।ये मजदूर भूखे प्यासे अपने छोटे मासूम बच्चों, महिलाओं व परिजनों को लेकर पराकाष्ठा की सीमा तक तकलीफे उठाकर यात्रा कर रहे है।इनकी लाचारी व दुख दर्द इतना है कि उसे शब्दो मे अभिव्यक्त करना मुश्किल है ।अनेक लोग भुखमरी, बीमारी और दुर्घटनाओं के चलते कालकवलित हो चुके है । तमाम सरकारी प्रयासो के बावजूद देश की सड़कों और रास्तो पर लाखो अभागे श्रमिको का सैलाब कम होने का नाम नही ले रहा है। भूख प्यास ओर आर्थिक बेबसी के बावजूद अनेक जगहों पर पुलिस की मारपीट इनकी बेबसी और समाज के अमानवीय व संवेदनाहीन चेहरे को प्रकट करता है।
कोरोना संक्रमित क्षेत्रों में प्रशासन की कड़ी पबंदियो के कारण आमजन को राशन पानी सहित अन्य बुनियादी सुविधाओं के लिए बहुत परेशान होना पड़ रहा है। लोग अपने घरों में कैद है, ऐसे में मजदूर ,किसान ,व्यापारी, उधोगपति ,कर्मचारी ओर विद्यार्थी वर्ग शारीरिक दूरी की पाबन्दियों से आजिज आ चुका है।
देश मे कुछ सप्ताहों की शारिरिक दूरियों के लिए घरों में रहने की हिदायतों और अन्य सभी गतिविधियो पर आंशिक या पूर्ण पाबन्दियों के कारण देश की जनता का जीना मुहाल हो गया है ।गरीब और मजदूर वर्ग को अपना पेट भरना मुश्किल हो गया है।जबकि यह पाबंदियां सरकार द्वारा आमजन को इस महामारी के संक्रमण से बचाने के लिये लगाई गई है ।सरकार के सामने सबसे बड़ी चुनोती है कि वह देश की जनता का जीवन सुरक्षित रखे ,यह लॉक डाउन उसी की कवायद है।इसमे नुकसान कम और फायदा अधिक है क्योंकि जीवित रहने की शर्त
पर आर्थिक नफा नुकसान कोई मायने नही रखता ।मानव जीवन अतुल्य ओर अनमोल है ।
क्या हम कल्पना कर सकते है कि सदियों से हमारे ही समाज का बहुत बड़ा वर्ग सामाजिक दूरियों(सोशल डिस्टेंसिंग) के अभिशाप के साथ जी रहा है ।कभी किसी ने यह सोचने की जहमत नही उठाई कि इंसान ने ही दूसरे इंसानो के प्रति इतना घृणित और नकारात्मक नजरिया क्यो रखा। भारत मे जातिवादी सामाजिक दूरिया(सोशल डिस्टेंसिंग) दुनिया का दुर्लभतम उदाहरण है। समाज के कुछ वर्गों ने कथित निम्न जातियों के बहुजन वर्ग के हाथ का खाने से ,उनके स्पर्श से ,सार्वजनिक स्थानों व संसाधनो के उपयोग व उपभोग से अनर्थ होने, धर्म भ्रष्ट होने और पाप लगने का भ्रम पाला गया है ।इन पाखंडी व जातिवादी स्वार्थी लोगो ने भोली भाली जनता को भी दिमागी रूप से पंगु बनाकर उन्हें भी ऐसे अमानवीय जातिगत व्यवहार अर्थात सामाजिक दूरिया ओर वर्जनाएं मानने के लिए मानसिक तौर पर उत्प्रेरित करके इस व्यवस्था में ढाला है।
हमारे समाज के इस शोषित व पिछड़े वर्ग को सैकड़ो वर्षो से उसके मानवीय ओर मूलभूत अधिकारों से वंचित रखते हुए उन्हें अच्छा भोजन करने से ,अच्छे वस्त्र पहनने से ,स्वच्छ पानी पीने से ,शिक्षा ग्रहण करने से मन्दिरो में पूजा पाठ से और सामाजिक समागम के तमाम आयोजनों से वंचित करके सामाजिक दूरिया रखते हुए इस गरीब वर्ग को अपमानित व प्रताड़ित किया गया। कथित स्वर्ण जातियो ने सामुहिक तौर पर इस वंचित वर्ग पर इतने अत्याचार किये जिसका वर्णन करना बहुत कठिन है।ये वंचित ओर शोषित लोग इसी देश के मूलनिवासी और सहधर्मी होते हुये सदियो से किन अभावो ओर त्रासदियों को झेलते हुए यहाँ तक जीते आये है वह बेमिसाल है ,और यह सब उच्च वर्गों की सामाजिक दूरियों(सोशियल डिस्टेंसिंग) ओर वर्जनाओं के कारण ही हुआ है।यहाँ प्रश्न यह उठता है कि या तो शोषित समाज के लोग इंसान नही अथवा कथित अगड़ा वर्ग के लोगो मे इंसानियत ही नही है।
देश की आजादी और भारतीय संविधान के लागू होने के बावजूद ऐसे अराजक तत्व इन जातिवादी दूषित परम्पराओ ओर व्यवहार को बदस्तूर जारी रखना चाहते है।हालाँकि संवैधानिक और कानूनी बाध्यताओं के कारण व आधुनिक शिक्षा के फलस्वरूप अनेक लोगो के सार्वजनिक ओर वैयक्तिक व्यवहार और सोच में थोड़ा परिवर्तन हुआ है परन्तु सामाजिक स्तर पर जातिवाद से ग्रसित समाज जातीय ऊंच नीच की कुंठाओ से अभी भी विमुक्त नही हुआ है।
यदि हम निर्विकार भाव से सामाजिक दूरी (सोशियल डिस्टेंसिंग)की बात करे तो तार्किक रूप से इसका कोई लाभ नही दिखता है।इस भेदभाव से समाज के कथित उच्चवर्गो को गरीब व पिछडेवर्गो का हर प्रकार से अनैतिक शोषण करने का अधिकार जरूर मिलता है। देश मे पिछड़े वर्ग के प्रति दुरावपूर्ण व्यवहार से इस समाज की शारीरिक और बौद्धिक क्षमताओं का सदुपयोग नही किया गया जो अंततोगत्वा राष्ट्र के लिए हानिकारक ही साबित हुआ है जिसके प्रत्यक्ष अप्रत्यक्ष अनेकानेक दुष्प्रभाव देश पर पड़े है।
इस कोरोना वायरस की विश्वव्यापी महामारी की त्रासदी के कारण आने वाले समय मे लोगो की सोच और जीवनशैली में बहुत बदलाव आयेगा ।एक नूतन व परिष्कृत जीवन प्रणाली विकसित होगी ऐसी संभावना है।ऐसे में समाज वेत्ताओं और धार्मिक नेतृत्व कर्ताओ को सामाजिक दूरियों की अप्रासंगिक और कालबाह्य न्यूनताओं को समाप्त करके समर्थ और समृद्ध राष्ट्र बनाने की दिशा में पहल करनी चाहिए।समस्त धार्मिक ग्रन्थो और सामाजिक व्यवहारों की निष्कपट समीक्षा करके वर्तमान परिपेक्ष्य के अनुरूप सामाजिक व्यवहारों का निर्धारण और पालन जरूरी है ,यही देश के लिये हितकर होगा।
Very respectful and responsible lines🙏
Very nice and helpful sir