*गरीब की रोटी पर भ्रष्टाचार का दीमक* :-
—————————————-केंद्र व राज्य सरकार द्वारा समाज के कमजोर गरीब व अंतिम पायदान पर खड़े लोगो के कल्याणार्थ अनेक योजनाएं विविध नामो से चलाकर उन्हें मूलभूत आवश्यकताओं और जीवन निर्वाह की सुविधाएं सुलभ करवाने का प्रयास किया जाता है।ऐसी हरेक योजनाओं पर करोड़ो रूपयो का खर्च इस उम्मीद से किया जाता है कि आमजन की मुश्किलात कम करके लोककल्याणकारी सरकार होने का दावा सार्थककीय जाय।स्वतन्त्र भारत मे सात दशको से अधिक समय बितने के बावजूद आमजन की आर्थिक स्थिति में खास बदलाव नही हुआ है।समय के साथ सरकारी प्रयासों और जनजागृति से कुछ बदलाव हुआ है परन्तु अभी भी गरीब जनों के लिये बहुत कुछ करने की जरूरत है।पिछड़ेवर्गों और आदिवासी क्षेत्रों के वाशिंदों तक बुनियादी सहायता व सुविधाएं कम ही पहुँच पाती हैं।
हर सरकार नीतियां बनाकर विकास की नित नई योजनाएं बनाती है और इन योजनाओं को अमलीजामा पहनाने के लिए करोड़ो रूपये आवंटित करके खर्च करती है। राजनेता व शासकीय अधिकारी गरीब के उत्थान हेतु अपनी प्रतिबद्धता भी जताते है। इन योजनाओं पर भारी भरकम बजट व्यय करने के बावजूद जमीनी स्तर पर विशेष बदलाव नजर नही आता।जो धनराशि गरीब वृद्ध असहाय ओर पात्र लोगो पर खर्च होना था, जिसका लाभ अभावग्रस्त परिवारों को मिलना था , वह उचित जगह पर शतप्रतिशत नही पहुचता है। हर जगह मौजुद बिचौलियों द्वारा कुछ हिस्सा हड़प लिया जाता हैं।
पिंडवाड़ा तहसील में उपखण्ड अधिकारी द्वारा खाद्य सुरक्षा योजना में अनियमितता को लेकर प्राप्त शिकायतों की जांच करवाने पर जो तस्वीर सामने आई है वह हतप्रभ और निराश करने वाली है । दो बार हुई जांच में एक तहसीलदार सहित 117 सरकारी कर्मचारियों द्वारा खाद्य सुरक्षा का गेंहू जीमने का गम्भीर मामला प्रमाणित हुआ है। खाद्य सुरक्षा का अनुचित लाभ ये कार्मिक लंबे समय से उठा रहे है।यह संख्या तो सरकारी कार्मिक होने के कारण चिन्हित हो गई परन्तु आर्थिक रूप से सक्षम व प्रभावशाली व्यक्तियो की कुल संख्या की जांच की जाए तो स्थिति और भी खराब होने की संभावना को नकारा नही जा सकता है।
ऐसा नही है कि यह भ्रष्टाचार महज पिण्डवाड़ा तहसील में ही हुआ है बल्कि पूरे जिले और प्रदेश में भी ईमानदार जांच की जरूरत दर्शाता है।
अखबारों में छपी इस गम्भीर अनियमितता के साथ ही सूची में नामजद अधिकारी कर्मचारियो ने ज्ञापन देकर खाद्य सुरक्षा का अनाज लेने व सूची में नाम होने से अनभिज्ञता प्रकट करते हुए निष्पक्ष जांच की मांग की है।बिना आवेदन सूची में नाम जोड़ना ओर निर्धारित मापदण्ड से भी अधिक गेंहू लेना दर्ज होना, निःसन्देह वितरण और नियंत्रण व्यवस्था पर प्रश्न खड़ा करता है।सही स्थिति तो जांच के बाद ही सामने आएगी पर इतना तय है कि घोटाला तो हुआ ही है ,जिसकी मार वह अभागा गरीब परिवार झेलता है जो इस लाभ का नितांत पात्र था।
भ्रष्टाचार को लेकर आये दिन समाचार पत्रों में खबरे आती रहती है।कही पर किसानों के नाम से फर्जी ऋण लेकर लाखो का घोटाला तो कही जीवित पति का फर्जी मृत्यु प्रमाण-पत्र बनाकर विधवा पेंशन लेना ।वृद्धावस्था पेंशन की जरा सी उदारता ने तो अपात्र लोगो को पेंशन पाने का जरिया ही दे दिया है। मस्ट्रोलो में फर्जी हाजरी ,वानिकी कार्य,आवास व शौचालय निर्माण सहित विभिन्न सब्सिडी वाली योजनाओं में लाभार्थी को आज भी पूरी राशि मिलना सन्देह से परे नही है ।
सरकारी मंशा हमेशा यही रहती है कि समाज के उपेक्षित और अभावग्रस्त परिवारों को विभिन्न योजनाओं का लाभ दिलाकर उन्हें विकासपथ पर आगे बढ़ाया जाय परन्तु सार्वभौमिक नैतिक मूल्यों का ह्रास ,राजनीतिक दबाव ,भाई भतीजावाद और स्वार्थलोलुपता ने योजनाओं को शतप्रतिशत फलीभूत होने नही दिया।
गरीब व पिछडेवर्गो के उत्थान हेतु बनाई गई एक से बढ़कर एक योजनाएं सात दशक बाद भी दृश्य बदलने में कामयाब नही ही पाई हैं।सरकारी योजनाओं को परिणामदायी व ओर अधिक पारदर्शी बनाने के लिये पूरे सिस्टम की कार्यशैली की सम्पूर्ण समीक्षा करते हुए कार्यकारी एजेंसियों को और अधिक उत्तरदायी बनाने की जरूरत के साथ ही जवाबदेह नियंत्रण व्यवस्था लागू करनी पड़ेगी।
Thanks
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Excellent 👌 these are really a responsible lines🙏
Thanks sir
धन्यवाद
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