बसंत बहार मे गांव निहारे
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यह धरा अनुपम रूपवान, बहती पवन का परिहास,
वन रंग-बिरंगे फूलों से ,
और खेत धान से अटे पड़े।
मधुमास बसंती पुलक रहा ,
नव यौवन सा शृंगारित यह!
विभोर भँवर के गान यहां,
रस घोल रहे हैं दिश दिश में ,
सतरंगी तितली कीट पतंगे,
नृत्य करें मृग मोर यहां,
उड़ते पंखी करते कलरव,
और सांझ गगन की मनोहारी।
नयनो में क्षुधा स्नेहो की,
अपलक से नजारे कुदरत के,
सुध बुध बिसराता हर्षित मन,
मदमस्त बहारें हंस हंस के,
दे रही बुलावा मिलने का।
लेखक:- एम एल डांगी